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त्रिविक्रम कथा के जैन स्त्रोत और रूपान्तर
.श्री रमेश जैन, अनुसंधान अधिकारी सादुल राजस्थानी रिसर्च इंस्टी०, बीकानेर
भारतीय कथा साहित्य का निर्माण जिन लोक- उपासना की। प्रसन्न होकर विष्णु ने वरदान गाथाओं एवं पुराकथाओं से हुआ है; वे सब अमूर्त दिया कि वे अदिति ही के गर्भ से जन्म लेकर बलि एवं दार्शनिक तत्वों की व्याख्या के निमित्त दृष्टान्तों का बंधन करेंगे। (यहां बंधन का अर्थ बलि के के आधार पर विकसित एवं पल्लवित हुए हैं। वध से नहीं उसकी शक्ति को सीमित करने का ऋग्वेद के प्राकृतिक दृश्यों की कुछ प्रालंकारिक ही मंतव्य है) कथाओं का विकास भी इसी तरह हुआ है जिन्हें विष्णु वामन रूप से जन्म लेते हैं। बलि की बाद में ऐतिहासिक रूप दे दिया गया है। उदाहरण यज्ञशाला में जाकर तीन पग भूमि की याचना की, के रूप में हिरण्यगर्भ को लें, जिसका आकार अण्डे इस भूमि में यज्ञशाला स्थापित करने के लिए । जैसा है और जिससे सम्पूर्ण चल-अचल सृष्टि की बलि ने बड़ी उदारता व आग्रह से आवभगत करते उत्पत्ति हुई है। यही अण्डाकार शालिग्राम काला- हुए, वामन से स्वर्ण, रथ, भूमि इत्यादि सम्पदायें न्तर में विष्णु का पर्याय माना गया है । मांगने को कहा किन्तु वामन ने केवल तीन पग भागवत धर्म के प्रभाव में जिस अवतारवाद
भूमि ही चाही। असुरों के गुरु व राजपुरोहित की परिकल्पना ने जन्म लिया है, उन्हीं दशावतार
शुक्राचार्य ने बलि को आगाह किया कि विष्णु में वामन अवतार या त्रिविक्रम कथा एक है ।
वामन रूप में छलने आ रहे हैं। चूकि बलि ब्राह्मण इसका पौराणिक स्वरूप यों है
पूजक एवं दानशील था उसने आने वाले छल का
सहर्ष सामना किया। वामन ने भूमिदान के निमित्त पुराण कथा :
तीन बार अञ्जलि में जल लेकर संकल्प करने को वामन पुराण, नृसिंह, मत्स्य व विष्णु पुराण कहा । शुक्राचार्य ने कमण्डलु की नाली..में प्रवेश के अनुसार बलि विरोचन का पुत्र और प्रह्लाद का कर बाधा डालने का यत्न किया । अन्त में संकल्प पौत्र था । असुरराज प्रह्लाद स्वयं विष्णु भक्त थे पूरा होता है । वामन अपने आकार को बढ़ाकर
और उनकी रक्षा के निमित्त विष्णु को नसिंह त्रिलोक नाप लेते हैं केवलरों में । वामन अवतार लेना पड़ा । बलि बुद्धिमान, बलशाली और (विष्णु) बलि की दाना लता और वचनवद्धता यज्ञ विधान का ज्ञाता व कर्ता था। ब्राह्मणों के पर प्रसन्न होकर अगीमीयधुर्म में इन्द्रपद देने का प्रति अपरिमित श्रद्धा व सम्मान की दृष्टि थी। वरदान देते हैं । जब बलि ने देवताओं के राजा इन्द्र को जीतकर, जैन कथा : का सबको भगा दिया तो उनकी दीन-हीन अवस्था गुणाढ्र 'की 'वडकहा' (वृहत्कथा) विश्व के देखकर देवताओं की माता अदिति ने विष्णु की प्राचीनतम कथा संग्रहों में अकेला व अनुपम है।
महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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