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________________ पं० सदासुखजी का निधन स्थल अजमेर या वैराठ विद्यावारिधि डा० ज्योतिप्रसाद जैन, लखनऊ । तत्त्वार्थधिगमसूत्र, रत्नकरण्ड श्रावकाचार, भगवती आराधना आदि प्राचीन धर्मशास्त्रों की सुप्रसिद्ध भाषा - वचनिकाओं के रचयिता पंडित सदासुखजी का नाम जैन समाज, विशेषकर उत्तर भारत की दिगम्बर जैन समाज में सर्वत्र सुविदित है। उनकी उक्त टीकायों के पठन-पाठन, स्वाध्याय तथा शास्त्रसभात्रों में वाचन का प्रभूत प्रचलन रहा है । समय-समय पर उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्त्व से सम्बन्धित लेख भी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। हिन्दी जैन साहित्य के इतिहासकारों में पं० नाथूराम प्रेमी ने सदासुखजी का प्रति संक्षिप्त परिचय दिया था, 1 बा. कामताप्रसाद ने कोई उल्लेख नहीं किया, संभवतया इसलिये कि उन्होंने वि. सं. १६०० के उपरान्त के किसी विद्वान् का उल्लेख नहीं किया । डा० नेमिचन्द्र शास्त्री ने अपेक्षाकृत अधिक परिचय दिया। हमने भी हाल में प्रकाशित अपनी पुस्तक में निश्चित ज्ञात तथ्यों के आधार से पं. सदासुखजी का संक्षिप्त परिचय दिया है । तत्त्वार्थ सूत्र की प्रर्थप्रकाशिका नाम्नी अपनी टीका में पंडितजी ने अपने विषय में जो कथन किया है, उनके शिष्य पारसदास निगोत्या ने अपने ज्ञानसूर्योदय नाटक में उनके प्रति जो उद्गार प्रकट किये हैं, तथा अन्य समसामयिक आधारों से जो कुछ विदित होता है, वह संक्षेप में यह है कि पंडित सदासुखदासजी कासलीवाल गोत्रीय खण्डेलवाल थे और जयपुर नगर के निवासी थे, किन्हीं डेडराज के वंशज और दुलीचन्द के सुपुत्र थे । उनका जन्म १७६५ ई० के लगभग और स्वर्गवास लगभग ७० वर्ष की आयु में १८६६ ई० के ग्रासपास हुग्रा था । पंडित जयचन्द छाबड़ा और पं. मन्नालाल सांगाका उनके गुरु रहे थे, और पं. पन्नालाल संघी दूनीवाले, पं. पारसदास निगोत्या, पं. नाथूराम दोसी, सेठ मूलचन्द सोनी, भँवरलाल सेठी आदि उनके अनेक शिष्य थे । उपरोक्त तीनों वचनिकाओं के प्रतिरिक्त, जिनमें भगवती आराधना की टीका १८५१ में रची थी उन्होंने बनारसीदास कृत नाटक समयसार की टीका, नित्य पूजा टीका और कलंकाष्टक की टीका भी बनाई थी । आजीविका के लिए पंडितजी जयपुर राज्य की कचहरी में अत्यल्प वेतन पर एक साधारण से पद पर नियुक्त थे और परम संतोष एवं निस्पृहवृत्ति से अपना १. हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास, (१९१७ ई०), पृ. ८२ । २. हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास (१६४७ ) । ३. हिन्दी जैन साहित्य परिशीलन, भा. २ (१९५६), पृ. २३७ - २३८ ४. प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएं, (१९७५), पृ. ३४१ ५. प्रेमी, पृ. ८२ ६. वही महावीर जयन्ती स्मारिका 76 Jain Education International For Private & Personal Use Only 2-79 www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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