SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 199
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अन्त में श्रेणिक ने द्वंतवादी कौलिक से कहा सन्मति महावीर के इस अनुपम सिद्धांत अनेकि यदि तुम्हें फांसी का दण्ड दिया जाय तो तुम कान्त तथा स्याद्वाद पर ध्यान देते हैं तो स्पष्ट हो पहिले से ही शरीर तथा आत्मा को अलग-अलग जाता है कि यह सिद्धांत सहिष्णुता का पाठ पढ़ाता मानते हो, मृत्यु दण्ड से उनके वास्तविक रूप में है तथा दूसरों के दृष्टिकोण को समझने की प्रेरणा अलग हो जाने पर तुम्हारी मान्यता के अनुसार देता है। कुछ हानि नहीं होगी । तुम भी सन्मति महावीर के कथन पर ध्यान दो कि शरीर और आत्मा किसी समाज में उपादान, निमित्त तथा निश्चय और दृष्टिकोण से अभिन्न भी हैं। व्यवहार को लेकर जो खींचतात चल रही है. उससे चारों व्यक्तियों को समझ में आया कि सन्मति लगता है कि एक दूसरे के दृष्टिकोण को नहीं महावीर का अनेकान्त दर्शन समन्वयवादी है और समझा जा रहा है । अनेकान्त और स्याद्वाद भेद यह भी बताता है कि नित्यता अद्वैतभाव और में अभेद का रास्ता दिखाते हैं जबकि समाज में द्वैतभाव भी अपने-अपने दृष्टिकोण से सही हैं। अभेद में भेद होता जा रहा है । एकान्तवाद के चारों की मान्यता को केवल ऐसा ही है' इस तरह कारण समाज के लोगों में कषाय की भावना एकांगी मान लेने पर मृत्यु होने पर भी किसी की बलवती होती जा रही है, अपने आप में एक दूसरे कोई क्षति नहीं होती थी परन्तु दूसरे पक्ष को भी को मिथ्यादृष्टि तथा अज्ञानी समझते व कहते हैं। सत्य माना जाय तो सभी की क्षति थी। यह बात समाज के हित में नहीं है। इंसां कहाने का . डॉ. विजय जैन 'प्रानन्द' इतना बरस बादल कि डूब जाये धरती, शौक खत्म हो जाय गंगा में नहाने का । धुल के एक हो जाय मंदिर और मस्जिद, दफन हो जाय हर किस्सा जमाने का। इस मिट्टी से पैदा हो फिर इन्सान ऐसा हक रख सके जो इंसां कहाने का ॥ 1-156 महावीर जयन्ती स्मारिका 76 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy