SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 198
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लड़के ने जब इसी समय श्रेणिक के सामने दूसरा प्रकरण स्थित हुआ । मृगचक्षु नित्यवादी के यवादी के लड़के को मार डाला है । चक्षु से पूछा गया तो मृगचक्षु ने उत्तर दिया कुलकर नित्यवादी है, अर्थात् प्रत्येक वस्तु परिवर्तित ज्यों की त्यों रहती है, नष्ट नहीं होती है, इस प्रकार कुलकर की मान्यता है । नित्यवादी की ष्टि में किसी का मरना जीना कैसा ? जब इनके सद्धान्त में मरना संभव नहीं है तो मारने वाले की कल्पना करना भी व्यर्थ है । इसी समय श्रेणिक के सामने तीसरा प्रकरण पिस्थित किया गया । कौलिक नाम के द्वैतवादी अद्वैतवादी प्रभाकर की स्त्री से बलात्कार किया है । इस कुकृत्य के कारण द्वैतवादी कौलिक अपराधी एवं दण्डनीय है । कौलिक द्वैतवादी ने बाव की दृष्टि से कहा - प्रभाकर अद्वैतवादी है । सार की सभी वस्तुओं में एक प्रखण्ड सत्ता को जानता है । अतवाद की दृष्टि में कौलिक मुझ एवं प्रभाकर में भेद ( भिन्नता ) ही नहीं है । ऐसी स्पति में व्यभिचार कैसा ? संसार में दिखाई वाले सभी पदार्थ इनकी मान्यता के अनुसार जिया हैं, असत्य हैं, असत्य पदार्थों के आधार पर देने का क्या औचित्य हो सकता है । कौलिक ने कहा - इस प्रकरण को लेकर यदि दण्डित किया जाता है तो प्रभाकर ने इसके एक लड़के को मारा है उस अपराध में उसे भी ण्डित किया जाना चाहिए। प्रभाकर से जब पूछा गया तो उसने उत्तर या कि कौलिक द्वं तवादी है, कौलिक की मान्यता इहै कि शरीर और आत्मा भिन्न-भिन्न हैं, जब शरीर और आत्मा द्वैतवादी की दृष्टि में स्वतः सन्न हैं तो मारना, मरना कैसा ? राजा श्रेणिक चारों प्रश्नों को सुनकर सन्देह पड़ गया । कहते हैं सम्मति महावीर से पूछा महावीर जयन्ती स्मारिका 76 Jain Education International गया कि ऐसे प्रकरण में क्या किया जाय । सन्मति महावीर ने उपाय बताया कि चारों अपराधियों से यह कहा जाय कि यदि तुम्हें मृत्युदण्ड दिया जाय तो तुम्हारी एकान्त मान्यता की दृष्टि से तुम्हारी क्या हानि होगी ? अर्थात् कोई हानि नहीं होगी ? राजा श्रेणिक ने चारों अपराधियों से क्रमशः कहा कि हे मृगचक्षु, तुम अनित्यवादी हो, तुम्हारे कोण से प्रत्येक पदार्थ क्षरण-क्षरण में बदलकर दूसरा हो जाता है । तुम्हें यदि मृत्युदण्ड दिया जाय तब भी बदल कर वही भिन्नता आनी है जो तुम मानते ही हो, इसलिए मृत्युदण्ड देने पर भी तुम्हारी कोई क्षति नहीं होगी । ऐसी स्थिति में सन्मति महावीर के कथन पर ध्यान दो कि संसार के पदार्थ सर्वथा अनित्य ही नहीं नित्य भी हैं । जब इन्हें नित्य भी मानोगे तो तुम्हें मृत्युदण्ड से हानि प्रतीत होगी और तुम उससे बचना प्रभीष्ट समभोगे । श्रेणिक ने नित्यवादी कुलकर को भी समझाया कि यदि तुम्हें या तुम्हारे लड़के को मृत्युदण्ड दिया जाय तो नित्यवादी होने से, तुम्हारी दृष्टि में गरण तथा नाश होता ही नहीं, परन्तु तुम मरण से डरते हो, ऐसी स्थिति में सम्मति महावीर के कथन पर ध्यान दो कि संसार की वस्तुएं केवल नित्य ही नहीं होती हैं बल्कि विनाशशील भी होती हैं । विनाशशील होने की मान्यता भी सच होने से तुम्हें मृत्युदण्ड से हानि दिखाई देती है । राजा श्रेणिक ने श्रद्वतवादी प्रभाकर से कहा कि शरीर और आत्मा कथंचिद् भिन्न भी है । यदि इनको सर्वथा अभिन्न ही मानते हो तो मृत्युदण्ड मिलने पर शरीर से आत्मा पृथक् होने की शंका कर दुःखी क्यों होते हो ? इसलिए सन्मति महावीर के कथन पर ध्यान दो कि संसार में शरीर और प्रारमाएँ किसी दृष्टि से भिन्न-भिन्न भी हैं । For Private & Personal Use Only 1-155 www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy