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________________ 'दिगम्बर' शब्द का अर्थ है शरीर पर किसी प्रकार का कोई प्रावरण, पाच्छादन आदि का न होना। यह कार्य प्रकृति करती है अर्थात् दिशाएं ही उनका परिधान होता है । भगवान् महावीर ऐसे चौबीस तीर्थंकरों की परम्परा में अन्तिम थे जिनकी ऐतिहासिकता सन्देह से परे है । सामान्य जन के लिए दिगम्बरत्व असभ्यता का परिचायक है। यदि कोई नंगा होकर अन्यों के सामने आता है तो लोग उसे असभ्य और बेशर्म कहते हैं। प्रश्न है जैन मुनि ही नहीं जैनेतर देव तथा सन्त यथा शिव परमहंस प्रादि भी क्यों नग्न दिगम्बर रहते हैं इस प्रश्न का उत्तर प्राप पायेंगे विद्वान् रचनाकार की इस लघु रचना में। प्र० सम्पादक महावीर का दिगम्बरत्व . डॉ. निजामउद्दीन श्रीनगर (कश्मीर) दिगम्बर मुनि नग्न रहते हैं -सर्वथा नग्न । बच्चे उसका ईट-पत्थर से स्वागत करते हैं-बड़े यही नग्नता समाज में अशिष्टता, असभ्यता की भी नाकभौं चढ़ाकर चलते हैं । नग्नता में जब इतनी सूचक है । वनों में जो जातियां नग्न अथवा अर्द्धनग्न बुराइयां है तो दिगम्बर मुनि नंगे क्यों रहते हैं, रहती हैं उन्हें हम असभ्य ही तो कहते हैं, समझते अाखिर मजबूरी भी क्या है ? अाज जहां नये-नये, भी हैं। इससे यही जाहिर होता है कि जहां नग्नता बढ़िया से बढ़िया 'फेबरिक क्लोथ' चल रहे हैं, होती है वहीं असभ्यता, अनैतिकता है, वह घृणित कितने स्निग्ध व कितने पारदर्शी ! फिर तो उन्हें है, सावद्य है। इसी बुगई को सामने भी धारण कर अपनी नग्नता की रक्षा की जा रखकर हम बहुधा इस मुहावरे का प्रयोग करते सकती है और साथ में सामाजिकता की रक्षा भी हैं-'नंगा करना' या 'नंगा होना'। इनमें अर्थ की हो जायगी । मेरे इतने सब कुछ से यही स्पष्ट होता गम्भीरता है, जब हम किसी को नंगा करते' हैं तो है कि नग्नता एक सामाजिक दोष है, इससे न उसके सारे पोशीदा राज खोल देते हैं, न बतलाने केवल अशिष्टता, अश्लीलता जाहिर होती है वरन् वाली बातें भी बतला देते हैं और इससे उस व्यक्ति व्यभिचार, दुश्चरित्रता को फलने फूलने का रास्ता की बदनामी, बेइज्जती खूब होती है-मानों उसे मिलता है। ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में मनुष्य अपने काली करतूतों का बदला मिल रहा है । यों आशातीत उन्नति और सफलता प्राप्त कर रहा है, तो हम सभी जानते हैं कि हमारे कपड़ों के अन्दर चांद पर पहचकर अन्य ग्रहों-उपग्रहों तक पैर क्या है ? लेकिन सबके सामने तो कपड़े उतार कर बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील है, सुपरसोनिक विमानों रखे नहीं जा सकते । यह हिम्मत की बात नहीं, पर बैठकर यात्रा कर रहा है, पानी के अन्दर वगैरती व बदतमीजी है। कहने का अभिप्राय यही प्रवेश कर सैकड़ों मीटर की गहराई से तेल है कि 'नग्नता' एक दोष है, बुराई है जिसे छिपाने निकालने में जुटा है फिर भी नग्नता को पसंद के लिए-सामाजिकता की और सामाजिक दायित्व करेगा क्या ? पूरा करने के लिए हम वस्त्र धारण करते हैं। नग्नता देखने को मिलती है नंगे नाचघरों में, किसी विगतबुद्धि, पागल को नग्नावस्था में देखकर 'सनबाथ' करते समय । यहां अधिक स्वच्छन्दता और महावीर जयन्ती स्मारिका 76 1-157 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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