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________________ (2) (ख) मनः समिति भावना मन सम्यक् चर्या में लगाना । (ग) वचन समिति भावना - वाणी पर संयम रखना । (घ) एषरणा समिति भावना - निर्दोष आहार की गवेषणा करना । (न) प्रादान निक्षेपण समिति - भावना - विवेकपूर्वक वस्तु ग्रहण करना और रखना । सत्य महाव्रत की पाँच भावनाएं - (क) अनुचित्य समिति भावना सत्य के विविध पक्षों पर चिन्तन कर के बोलना । ( ख ) क्रोध निग्रह रूप क्षमा भावनाक्रोध-त्याग | (ग) लोभ विजय रूप निर्लोभ भावना - लोभ-त्याग । (घ) भय मुक्ति रूप धैर्ययुक्त अभय भावना-भय-त्याग । ( न ) हास्य मुक्ति वचन संयम भावना - हास्य-त्याग | ( 3 ) अचौर्यं महाव्रत की पांच भावनाएं - (क) विविक्तवास समिति भावना- निर्दोष स्थान में निवास का चिन्तन । ( ख ) अनुज्ञात संस्तारक ग्रहण रूप अवग्रह समिति भावना निर्दोष प्रौढना बिछोना । (ग) शय्या - परिकर्म वर्जन रूप शय्या समिति भावना - शोभा - सजावट की वर्जना | 1-128 (घ) ग्रनुज्ञान भक्तादि भोजन लक्षण साधारण पिंडपात लाभ समिति Jain Education International भावना - सामग्री के समान वितरण और संविभाग की भावना । विनयकरण समिति भावना - साधर्मिक के प्रति विनय व सद्भाव । ( 4 ) ब्रह्मचर्यं महाव्रत की पांच भावनाएं - (क) असम्भक्तवास वसति — ब्रह्मचर्य में बाधक कारणों, स्थानों और प्रसंगों से बचना । (न) साधर्मिक ( ख ) स्त्री कथा विरति स्त्री के चिन्तन और कीर्तन से बचना । (ग) स्त्री रूप-दर्शन विरति स्त्री के रूप सौन्दर्य के प्रति विरक्ति । (घ) पूर्वरत - पूर्व क्रीड़ित विरति-विकारजन्य पूर्व स्मृतियों का चिन्तन न करना । (न) प्रणीत प्राहारत्याग - आहार संयम, तामसिक भोजन का त्याग । (5) अपरिग्रह महाव्रत की पांच भावनाएं - (क) श्रोत्रेन्द्रिय संवर भावना - श्रोत्रेन्द्रिय के मनोज्ञ-अमनोज्ञ विषयों में राग द्वेष न करना । (ख) चक्षुरिन्द्रिय संवर भावना - चक्षुरिन्द्रिय के मनोज्ञ अमनोज्ञ विषयों में राग द्वेष न करना । ( ग ) घ्राणेन्द्रिय संवर भावना - घ्राणेन्द्रिय के मनोज्ञ - श्रमनोज्ञ विषयों में राग-द्वेष न करना । (घ) रसनेन्द्रिय संवर भावना ---- रसनेन्द्रिय के मनोज्ञ श्रमनोज्ञ विषयों में रागद्वेष न करना । (न) स्पर्शनेन्द्रिय संवर भावना स्पर्शने - न्द्रिय के मनोज्ञ - मनोज्ञ विषयों में राग-द्वेष न करना । For Private & Personal Use Only महावीर जयन्ती स्मारिका 76 / www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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