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ध्यान योगी महावीर
समस्त संसार के योगक्षेम कर्ताः 'भगवान् महावीर आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व इस घरती पर अवतरित हुए। भगवान महावीर के मन में अपने मौलिक स्वरूप की जिज्ञासा उत्पन्न हुई। उनके मन में स्थूल शरीर के भीतर छिपे हुए परम तत्व को पाने की उत्कट आकांक्षा जगी मोर वे स्थूल प्रवृत्ति को छोड़कर सूक्ष्म की खोज में निरत
__ भूख, पराक्रम-हीनता, अज्ञान, प्रासक्ति भोर दुर्बलता ये पांच साधना के बहुत बड़े विघ्न हैं। इन पांचों पर विजय प्राप्त करके भगवान् महावीर ने अपनी साधना को और अधिक उद्दीप्त किया। साधना के प्रथम चरण में भगवान् ने सुधा पर विजय पाने का अभ्यास किया। दूसरे चरण में भय पौर निद्रा पर विजय पाने का प्रयत्न किया, तृतीय चरण में प्राण की सूक्ष्मता को पकड़ा, चतुर्थ चरण में सब पदार्थों से भिन्नता की अनुभूति प्राप्त कर प्रासक्ति पर विजय पाने का प्रयास किया। पांचवें चरण में साधना में आने वाले कष्टों पर विजय पाने का अभ्यास किया।
जैन मागमों में साधना के कई प्रकार बतलाये हैं। जैसे--तप साधना, ध्यान साधना, मौन साधना मादि। वहां पर तप के दो भेद बतलाये गये हैं-पान्तरिक तप और बाह्य तप । भपवान ने उपवास प्रादि तपस्या को बाह्य तप और ध्यान को आन्तरिक तप कहा है। किन्तु कालान्तर में ध्यान बाह य और अनशन प्रान्तरिक तप जैसा बन गया। ___ भगवान की साधना उपवास और ध्यान से समन्वित थी। उनका कोई भी उपवास ऐसा नहीं हुमा जिसमें ध्यान की प्रक्रिया न चली हो।
साध्वीश्री उषाकुमारीजी
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