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छुट्टी ही सरकार क्यों नहीं करती ? छुट्टी एक दिन की और बढ़ा देने से अथवा छट्टियां और कम कर देने से सरकारी कार्य में कोई विशेष अन्तर श्राने वाला है यह तर्क भी ठीक नहीं है क्योंकि भारत में काम करने वालों की मनः स्थिति किसी से छपी नहीं है । सरकार के इस निर्णय से हमारी स्थिति और शक्ति का पुनः एक बार पर्दाफाश हो गया है ।
और अब डा० उपाध्ये भी नहीं रहे
: जैन विद्या तथा जैन वाङ्मय के अद्वितीय विद्वान् डा. ए. एन. उपाध्ये भी अब हमारे बीच नहीं रहे । यह समाज का दुर्भाग्य ही है कि जैन भारती के सेवक एक एक कर हमारे बीच से उठते जा रहे हैं और उनके स्थान की पूर्ति करने वाले विद्वान आगे आ नहीं रहे । डा. नेमीचन्द्र शास्त्री, श्री गुलाबचन्द्र चौधरी, और डा. हीरालाल जैन के पश्चात् यह इस वर्ष की सबसे बड़ी क्षति है । वे एक ऐसे विद्वान् थे जिनके ऋण से समाज उरण नहीं हो सकता ।
२५०० निर्वाण वर्ष की उपलब्धियां
भ० महावीर का २५०० वां निर्वाण वर्ष समूचे जैन समाज की दृष्टि से कई महत्वपूर्ण उपलब्धियों का वर्ष रहा है । इस वर्ष की सबसे बड़ी उपलब्धि तो यह रही है कि समाज के विभिन्न प्राम्नायों के लोग एक दूसरे के अधिक निकट आए हैं और उन्होंने एक दूसरे को सहिष्णु होकर सुनने समझने का प्रयत्न किया है । समाज हित के ही नहीं प्राणिहित के भी बहुत से कार्य इस वर्ष सम्पन्न हुए हैं । भ० महावीर के उपदेशों और सिद्धान्तों का प्रचार प्रसार भी इस वर्ष में खूब हुवा है फलस्वरूप जैन धर्म अब कहीं भी अज्ञात नहीं रहा है । निश्चय ही कमियां भी रही हैं जो स्वाभाविक भी थी तथापि उपलब्धियां भी नगण्य अथवा उपेक्षणीय नहीं हैं । किन्तु जैसा कि आचार्य तुलसी ने अपने सन्देश में कहा है हमारा यह अर्थ कहीं इति होकर न रह जाय इस ओर हमें जागरूक रहना चाहिए । समाज में कार्य करने को विशाल क्षेत्र है और कमियां इतनी हैं तथा उनकी जड़ इतनी गहरी हैं कि उन्हें दूर करने के लिए उन्हें उखाड़ फेंकने के लिए वर्षों के प्रयत्न की आवश्यकता है । २५०० वें निर्धारण वर्ष की परिसमाप्ति के साथ ही कहीं हमारे बढ़ते कदम लड़खड़ा न जावें । लोक-कल्याण की जो सुखद मंदाकिनी इन दिनों प्रवाहित हुई है वह कहीं सूख न जाय । इस वर्ष की ये उपलब्धियां हमारे जोश और होश को कायम रखने वाली प्रमाणित होनी चाहिए ।
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