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केवल भगवान महावीर की प्रत्युत जैन दर्शन की विशालता तथा प्रामाणिकता सिद्ध हो जाती है ।
कतिपय हिन्दी कवियों ने महावीर स्वामी के व्यक्तित्व तथा सिद्धान्तों से सम्बन्धित सूत्रों का सुन्दर-परस अनुवाद किया है।
'महावीराष्टक' के द्वितीय श्लोक का अनुवाद भवानी प्रसाद मिश्र की लेखनी द्वारा अमर हो गया है—
कांख में जिनके नहीं है लाल डोरे भक्त मन के निकट
प्रकटित द्वेष लव जिनके निहोरे
एकटक, कमलाक्ष, स्फुट मूर्ति प्रशमित, नित्य-निर्मल
नयन-पथ से हृदय से आयें, पधारे वे अचंचल |
भगवान् महावीर के निर्वाण के पच्चीस सौ वें वर्ष के उपलक्ष्य में राजस्थान के एक किसान-कवि बशीर अहमद 'मयूख' ने श्रमरण- सूक्तों का अनुवाद कर 'अर्हत' नामक ग्रन्थ प्रकाशित किया है । 'व्यवहार भाष्य' के सैंतालीसवें पद्य में 'अनेकांते'सबै वि होति सुद्धा
न
सुद्धो नयो उसढ्ढाणे ||
को उन्होंने यह हिन्दी रूप प्रदान किया है
चितन की प्रत्येक दृष्टि
अपने विचार के केन्द्र पर
होती शुद्ध प्रबुद्ध विविध मतों का कोई भी नय चितन के प्राधार पर
होता नहीं अशुद्ध ।
गद्य साहित्य में महावीर
भगवान् महावीर स्वामी के जीवन तथा दर्शन को लेकर हिन्दी में विशाल गद्य साहित्य लिखा गया है जिसके तीन भाग मिलते हैं-
(3) ललित साहित्य (ख) समीक्षात्मक साहित्य (ग) पत्र-पत्रिकाए
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(क) ललित साहित्य इसके अन्तर्गत नाटक, उपन्यास तथा कहानी की विधाएं प्राती हैं।
नाटक : स्वर्गीय ब्रजकिशोर 'नारयण' ने 'वर्द्धमान महावीर' न मक श्रेष्ठ नाटक लिखा है । इसका आख्यान श्वेताम्बर जैन ग्रागम पर श्रावृत है । यह रंगमंचीय नाटक है। इसकी समस्त घट - नाएं दृश्य हैं। इसके अभिनय में अधिकतम दो घण्टे लग सकते हैं । इस नाटक का मूल संदेश श्रहिंसा-पालन है ।
उपन्यास : श्री वीरेन्द्र कुमार जैन ने महावीर स्वामी के सम्पूर्ण जीवन को अपने उपन्यास 'अनुत्तर योगी' के तीन खण्डों में बांध दिया है । इस उपन्यास को लोकप्रियता प्राप्त हुई है। जहां प्रथम खण्ड में 'वैशाली का विद्रोही राजकुमार' है तो द्वितीय खण्ड में 'असिधारा पथ का यात्री' । उपन्यासकार ने दुनियां में सर्वप्रथम एक शुद्ध सृजनात्मक प्रयास द्वारा भगवान् महावीर को पच्चीस सदी व्यापी सम्प्रदायिकता के जड़ कारागार से मुक्त करके उन्हें निसर्ग विश्व - पुरुष के रूप में प्रकट किया है। इस उपन्यास में महावीर का वह रूप भाया है जिन्होंने शासन सिक्के और सम्पत्ति संचय की अनिवार्य मृत्यु घोषित करके, मनुष्य और मनुष्य तथा मनुष्य श्रौर वस्तु के बीच नवमांगलिक सम्बन्ध की उद्घोषणा की और प्रस्थापना की ।
कहानी श्री बालचन्द्र जैन के कहानी - संकलन 'आत्मसमर्पण' की कहानी 'मोह- निवारण' में समदर्शी भगवान महावीर के उपदेशों की चर्चा आयी है । इसी संकलन की एक कहनी परिवर्तन' में सम्राट् श्रेणिक के मिथ्याभिमान के चूर्ण होने का आख्यान मिलता है ।
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(ख) समीक्षात्मक साहित्य : भगवान् महावीर स्वाभी के व्यक्तित्व तथा कृतित्व के विविध पक्षों पर प्रकाश डालने वाले हिन्दी में अनेक जैन निबंधकार हैं जिनके सर्वतोमुखी कोटि के तिबंध साहित्य की निधि हैं। इनमें श्री जुगल
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