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श्री गणेश दिगम्बर जैन संस्कृत महाविद्यालय, सागर की श्री छात्र हितकारिणी सभा द्वारा प्रकाशित तथा प्रेमचन्द्र 'दिवाकर' द्वारा लिखित 'भगवान महावीर' नामक पुस्तिका में महावीरतर्पण इस प्रकार किया है :
सत्य अहिंसा स्याद्वाद की,
पीकर पुनः सुधामय धारा । भक्ति भाव से श्रद्धांजलि करता, जगत समर्पित सारा ।
जबलपुर के पाक्षिक 'शताब्दी-चर्चा' के महावीर- विशेषांक (सन् 1970 ) में प्रकाशित कविताओं में महावीर की सच्ची श्रद्धांजलि मिलती हैं । हुकुमचन्द 'अनिल' मंगलाचरण गाते हैं :
तुम सत्य अहिंसा के प्रतीक, जय वन्दनीय श्री महावीर । दुखियों की प्राकर हरो पीर, श्राश्रो श्राश्रो फिर महावीर ।। बालमुकुन्द 'नन्द' महावीर की जय-जयकार
करते हैं :
जिसे मांगना मांग ले आकर
भाई घड़ी वरदान की । एक साथ जय आकर बोलो, महावीर भगवान की ॥ नाम के तेरे दीप जले, मन्दिर और तीर्थं महानों में । श्रमर कहानी दुनिया गाये, महिमा वेद पुराणों में । saft लगी है नाम कष्ट की, चमके जगमग ज्योति ज्ञान । एक साथ जय श्राकर बोलो, महावीर भगवान की ।। लक्ष्मीचन्द जैन युग-निर्माता का कलियुग में
फेर से आह्वान करते हैं :
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भारत गारत हो रहा आज,
प्रभु उसकी लाज बचा जाओ ।
श्री धर्म समन्वित राजनीति,
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नेतानों को समझा जानो । हे युग निर्माता ! युग सृष्टा, कलियुग में फिर से ना जाओ ||
तारण तरण समाज, सागर द्वारा प्रकाशित 'तारणिका' (सन् 1969 ) में प्रकाशित ऋॠषभ समया की कविता की ये पंक्तियाँ महावीर स्वामी पर भी चरितार्थ होती हैं :
बाधानों में मुस्काते जो, हंस-हंस जीवन जी जाते जो,
वही महान कहे जाते हैं, वही जवान कहे जाते हैं ।।
2-107
(ड़) अनुवाद-काव्य :
भगवान् महावीर स्वामी के चरित्र तथा चितन को लेकर संस्कृत, प्राकृत तथा अपभ्रंश से हिन्दी पुष्कल अनुवाद- काव्य श्राया है जिससे आधुनिक हिन्दी साहित्य की श्रीवृद्धि हुई है ।
में
पन्द्रहवीं शती की भट्टारक सकलकीर्ति द्वारा रचित संस्कृत की काव्यकृति 'वोर वर्धमान चरित' का सुन्दर अनुवाद पं० हीरालाल शास्त्री ने किया ।
कवि पुष्पदंत कृत 'महापुराण' तथा श्रीचन्द्रकृत 'कहाकोसु' के अपभ्रंश काव्यों से भगवान् महावीर के चरित्र को संकलित कर उसे 'वीरजिरिगद चरिउ' के रूप में डा० हीरालाल जैन ने हिन्दी में प्रस्तुत किया ।
संस्कृत के मूलकवि अग द्वारा रचित 'वर्षमान पुराण' का हिन्दी अनुवाद पं० पन्नालाल साहित्याचार्य ने किया ।
अपभ्रंश के महाकवि रघू के 'सम्मईजि चरिउ' के हिन्दी अनुवाद का श्रेय डा० राजाराम जैन को है ।
पं० बेचरदास जीवराज दोशी ने हिन्दी में 'वियाहपतिसुत्त' को प्रस्तुत करके ऐतिहासिक कार्य किया है। इस सूत्र में गौतम स्वामी द्वारा किये गये
भगवान महावीर से छत्तीस हजार प्रश्नों
के छत्तीस हजार समाधान श्राकलित हैं, जिनसे न
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