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बांधे चन्द्रोपक “प्रति अनूपम 'प्रानि करनी की तर। ........ झमझमात कलशे बहुत विधि सोहें मुतियन की सर। प्रजि झल्लर बनी मखतूल को बिच बिव जवाहर लाइयां । तहां बांधि डोरी रेशमी तिस तले चौक पुराहयां ।421 अजि जुर सकल सुहागन आई हां मजिजदुपति के मंहदी लावै हो । अजि कोई चित्र विचित्र बनावै हां, मंजि कोई खंडी पवन दुलावं हां 1431 चित्र विचित्र बनाय बहु विधि गीति मंगल गावही । वदन निरख प्राण वारौं हलद तेल चढ़ावहीं॥ उवटण अंग सुगंध केसर नेमि कुमार लगावहीं । सतभामा रुक्मिणी जामवंती नेमि कुमार न्हुलावहीं ।। अजि जदुपति कू वागी लाए हां, मजि चुन चुन सब पहराया । अजिहरि बल दोऊच मर जु ढारै हां, अजि जननी उर मानंद लाया हां ॥441
वहरि सुरपति ने लाई कांध, गिरनेर गढ़ में ले गए। पंच मुष्टि लोंच लेकर माप छद भस्थ भए 1681 अजि जे भूपति प्रभु के संग प्राये हां, अजि ते गिरनार कू सबही पाए हां । अजि केतेयक डरे संसारा हां प्रजि केतयक फिरै पर वारा हां 1691 केतयक राजन धरो संयम भीत भय संसार की। स्हह्र राजन लई दीक्षा साथ ... नेमि... कुमार की ।। श्री कृष्ण मरु बलभद्र मिलि फिरे घर कू भाया । तप कल्याणक भया प्रभु का लाल मंगल गाइया ।701 इति अष्टम मंगल अजि सवत्सर सुनो अरि साला हां, सत्राह से मौर चवाला हां। दिन सावन छठ उजारी हां ता दिन यह मंगल गायो हां 171। मंगलाचार नेमजी का सहजादपुर में गाइया । अग्रवाल गर्ग गोत्री अनक चूने कहाइया ।। छत्रपति बैठो चौकन्ना चारी चक्व निवाइयां । नौरंग साह बली के बारेलाल मंगल गाइयां 1721 यह मंगल पूरी भयो सुनत श्रवण सुखदाय । अपनी कृपा तुम राखियो नेम कुवर जिनराय 1731
इति श्री नेमनाथ जी का मंगल ब्याहला ।
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