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दुर्लभ है । स्वार्थ रहित देने वाला पोर एवं सु नाणी चरणेण हीणो, स्वार्थ रहित होकर जीने वाला दोनों ही
नाणस्स भागी न हु सोग्गईस ।। स्वर्ग को जाते हैं।"
हयं नाणं कियाहीणं, 3. "जैसे विडाल के रहने के स्थान के पास
हया अन्नणो किया । चूहों का रहना प्रशस्त नहीं हैं, उसी प्रकार पासंतो पंगुलो छड्ढो, स्त्रियों के निवास स्थान के बीच में ब्रह्म
धावमारणो म अन्धप्रो । चारियों रहना क्षम्य नहीं है।"
संजोगसिद्धीइ फलं वयंति, 4. "लोहे के कांटों से, मुहूर्त मात्र दुख होता
न हु एगचक्केण रहो पयाइ । है, वे भी (शरीर से) सुगमतापूर्वक निकाले अधों य पंगू प वणे समिच्चा, जा सकते हैं, परन्तु वे कटुवचन कठिनाई
ते संपउत्ता नगर पविट्ठी।। से निकलते हैं जो वर बढ़ाने और महाभय
---प्राकृत साहित्य का इतिहास, उत्पन्न करने के लिए बोले जाय ।
पृ. 205 पर उद्ध त । 5. "क्रोध प्रीति को नष्ट करता है, मान अर्थात जैसे चन्दन का भार ढोने वाला गधा
विनय का नाश करता है, कपट मित्रों का भार का ही भागी होता है, चन्दन का नहीं, उसी नाश करता है और लोभ सब कुछ विनष्ट प्रकार चरित्र से हीन ज्ञानी केवल ज्ञान का ही कर देता है।"
भागी होता है सद्गति का नहीं । क्रिया रहित 6. "धर्म से विरत जो कोई जगत् में विचरते ज्ञान और अज्ञानी की क्रिया नष्ट हुई समझनी
है, उन्हें सबके साथ वहो बर्ताव करना चाहिए । (जंगल में आग लग जाने पर) चुपचाप चाहिए जो वे (दुसरों से अपने प्रति) खड़ा हा पगु और भागता हुमा अन्धा दोनों ही कराना चाहते हैं।'
माग में जल मरते हैं । दोनों के संयोग से सिद्धि मागम-वाटिका इस प्रकार के शतशः कथन- होती है । एक पहिये से रय नहीं चल सकता । प्रसूनों की दिव्य गंध से सतत् सुवासित है। निशीयभाष्य के कामासक्ति सम्बन्धी दो कथन प्रावश्यकता उनके प्रचार एवं प्रसार के साथ जीवन देखि में उतारने की है।
"कानी मांख से देखना, रोमांचित हो जाना, प्रागमों के व्याख्या साहित्य में नीति : शरीर में कंप होना, पसीना छूटने लगना, मुह पर
आगमों के संकलन के पश्चात् दूसरी से लेकर लाली दिखाई पड़ना, बार-बार निश्वास और सोलहवीं शताब्दी तक मागम-साहित्य के समझने जंभाई लेना" ये स्त्री में प्रासक्त पुरुष के लक्षण हैं। समझाने के लिए नियुक्ति, भाष्य, टीका, चूणि कामासक्त स्त्रियों की पहचान भी देखिए-सकटाक्ष इत्यादि टीका-साहित्य की विपुल सष्टि हुई। इसमें नयनों से देखना, बालों को संवारना. कान व नाक भी प्रसंगवश हमें कहीं-कहीं पद्यमय नीति कथन को खुजलाना, गुह्य अंग को दिखाना, घर्षण और प्राप्त हो जाते हैं । उदाहरणार्थ माणिक्यशेखर भालिंगन तथा अपने प्रिय के समक्ष अपने दुश्चरित्रों
की अपनी दीपिका में का बखान करना, उसके हीन गुणों की प्रशंसा कुछ सुन्दर रीति वचन कहे है :
करना, पैर के अंगूठे से जमीन खोदना और जहा खरो चंदण भारवाही,
खखारना'-ये पुरुष के प्रति मासक्त स्त्री के लक्षण भारस्य भागी नहु चंदणस्स । समझने चाहिए।
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सारने
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