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पुनीत आगम साहित्य
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नीतिशास्त्रीय सिहावलोकन
विश्व के धार्मिक साहित्य को जैन साहित्य एवं दर्शन का महत्व निर्विवाद है। जैन धर्मावलम्बियों में जितना ऊंचा स्थान प्रागमों का है, उतना सम्भवतः अन्य प्रयों का नहीं। इन पुनीत पागमों का निर्माण तो स्वयं भगवान महंत ने किया था किन्तु बाद को उन्हें सूत्र रूपों में, मध मागधी भाषा में निबद्ध, उनके गणधरों ने किया। कारण यह था कि दुभिक्षों, एवं विप्लवों प्रादि प्रापत्तियों के कारण प्रागम पाहित्य विखंडित होता रहा था। भगवान महावीर के निर्वाण के लगभग 980 या 913 वर्ष पश्चात् (ई. सं. 453-466) के वलभी सम्मेलन में आगम लिपिबद्ध किये गये। अतः निश्चित है कि भगवान महावीर की भाषा अर्ध मागधी में उस समय तक पर्याप्त अन्तर अवश्य पा गया होगा। जो हो ये सूत्र दिव्य ज्ञान के महान् स्रोत है। श्री भगवत्शरण उपाध्याय के विश्व साहित्य की रूप रेखा पृ. 560 के अनुसार तो 'इन ग्रन्थों की सीमा में सारा मानव-ज्ञान जैसे सिमट कर पा गया है।' इनका सम्पादन, बल्लभी परिषद के द्वारा 46 ग्रन्थों में हुआ है। इनमें
1. पायारंग, सूयगडंग इत्यादि 12 अंग; 2. प्राववाइय, रायसपेणइय इत्यादि 12
उपांग; 3. च उसरण, पाउरपच्चकरवाण इत्यादि
10 पइन्ना; 4. निसीह, महानिसीह इत्यादि 6 छेयसुत्त;
और 5. उत्तरज्झयण, दसवेयालिय इत्यादि 4
मूलसुत्त है।
डा. बालकृष्ण 'अकिंचन' एम०ए०,पी-एच०डी०, बी-87, कालकाजी, नई दिल्ली-19
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