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- ही "प्राचीन पावा" था। इन लोगों के अतिरिक्त • श्रौर अनेकों शोधकर्ता विद्वानों और विशेषज्ञों ने इसका समर्थन किया । "प्राचीन पावा" नामक पुस्तक में प्रकाशित विशेषज्ञ विद्वानों के शोधपूर्ण लेखों द्वारा सभी शंकाओं का निराकरण हो जाता हैं प्रौर भगवान के निर्वाण की यह भूमि पावा नगर : पूर्णतः सिद्ध हो जाता है। जैन, बौद्ध और ऐतिहासिक ग्रन्थों से धध्ययन से इसी की पुष्टि होती है । कनिन्धम, कालीइल के प्रतिरिक्त भारतीय पुरातत्व वेत्तानों-डा० राजबली पांडे, डा० शंलनाथ चतुर्वेदी प्रादि ने इसी को भगवान की निर्वाण भूमि माना और सिद्ध किया है । प्रसिद्ध विद्वान, इतिहासज्ञ एवं शोधर्त्ता और वैशाली जैन रिसर्च इन्स्टीट्यूट के विगत डाइरेक्टर स्व० डा० हीरालालजी जैन एवं स्व० डा० गुलाबचंदजी चौधरी जैन तथा यवतमाल जैन रिसर्च संस्थान के डाइरेक्टर डा० दादाजी महाजन ने एक स्वर से इसे ही निर्वाण वाली पावा घोषित किया है । प्रसिद्ध इतिहासज्ञ एवं "ऐन अर्ली हिस्ट्री माफ वैशाली' के लेखक, (जिन्हें जैन समाज द्वारा इनकी
इस पुस्तक पर पारितोषिक मिला है, ) डा० योगेन्द्र . मिश्र और अनेक पुस्तकों के लेखक डा० धर्म रक्षित, स्व० महापण्डित श्री राहुल सांकृत्यायन श्रादि इसी भूमि को पावा मानने पर जोर देते हैं । इतिहास के प्रकाण्ड विद्वान, अन्वेषक एवं अनेक पुस्तकों के लेखक जैन मुनि स्व० श्री विजयेन्द्र सूरीजी महाराज, जैन मुनि डा० नगराज जी (डी० लिट) और जैन मुनि उपाध्याय श्री विद्यानन्दजी महाराज ने भी इसी पावा को भगवान महावीर की निर्वाण भूमि स्वीकार किया है। अब तो और भी अनेक बड़े-बड़े विद्वान, इतिहासज्ञ शोधकर्त्ता, प्रमुख जेन एवं विज्ञलोग पावा नगर ( सठियांवडीह - फाजिल नगर) को ही भगवान महावीर की सही, शुद्ध वास्तविक निर्वारण भूमि मानने लगे हैं। सभी को ऐसा ही मानना चाहिए । यही उचित है ।
राजगृह, नालन्दा और पाटलिपुत्र का तो क्षेत्र
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भगवान महावीर एवं भ. बुद्ध के विहार का प्रमुख तो भूमि खण्ड था। यहां यदि उस समय पावा नाम की पुरी ग्राम या नगर कोई रहता तो अवश्य जैन और बौद्ध शास्त्रो में राजगृह और नालंदा के वर्णन एवं सिलसिला या अनुक्रम में पावा का नाम भाया रहता - पर ऐसा कुछ नहीं हैं । भ. बुद्ध श्री यहां गए रहते और इस स्थान का विस्तृत वर्णन बौद्ध शास्त्रों में मिलता । लेकिन यहां पावा नामक कोई ग्राम या नगर ही उस समय नहीं था तो वर्णन कैसे श्राता । बौद्ध शास्त्रों में प्रमुख स्थानों का विवरण बड़ा ही व्यवस्थित एवं स्पष्ट है । ऐसे सभी स्थान पुरातत्व एवं इतिहास द्वारा सिद्ध हो गए हैं ।
पावा का वर्णन "बौद्ध साहित्य में अनेकों स्थानों पर अनेक बार आया है । यह पावा वैशाली और कुशी नगर के बीच में गंडक नदी के पच्छिम और गंगा नदी के उत्तर थी । ग्रंथों में भ० बुद्ध और उनके प्रमुख शिष्यों के आवागमन के मार्गों का स्पष्ट वर्णन है । भगवान महावीर का निर्वाण पाव में हुआ ऐसा भी निश्चित वर्णन
द्ध साहित्य में दिया हुआ है । यह पावा एक ही थी जहां बुद्ध और महावीर दोनों का आवागमन हुआ । वैशाली और कुशी नगर का पता लग जाने पर पावा का भी पता लगा और स्थान निश्चित रूप से निर्धारित हो सका । ऐसी हालत में यदि कोई विद्वान पूर्वाग्रह, या परम्परा के मोह वश इस पावा का विरोध करता है श्रोर नालन्दा के पास की मध्यकालीन पावा को निर्वाण भूमि सिद्ध करता है तो वह कदापि मान्य नहीं होना चाहिएचाहे ऐसा व्यक्ति क्यों न कोई बहुत बड़ा विद्वान ही हो ।
(ग) बौद्ध शास्त्रों का भी कुछ उद्धरण यहाँ देना असंगत नहीं होगा:--
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1- " एकं समयं भगवशे सक्केसु विरहति सामन गामे | तेमखो पण समयेन निगण्ठो नाथपुत पावायं अधुना कालंकतो होति ।"
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