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तुमने राग
नहीं जरूरत
पाठ त्यागा
अपरिग्रह का उपदेश दिया था
से ज्यादा
संचय हो यह आदेश किया था
पर चूहे दीमक खा जायें
या
सड़ जाये गोदामों में दीन हीन को बेचेंगे
भगवन्
द्रवित न कर सकता इनको
फिर भी अनाज ऊंचे दामों में
भूखों - नंगों का करुणा क्रन्दन तुम सहन कर सकोगे इस युग अर्चन वन्दन ?
ये कितने गुमराह हो गये
पुनः जरूरत
पंच अणुव्रत के अनुगामी
क्या ! क्या ! बतलायें - तुम
खुद ही जान रहे हो अन्तर्यामी
आत्मसात हो गई मिलावट
झूल छल कपट चोर बजारी
निश दिन धन कुबेर बनने की ।
धुन ने ही इनकी भत मारी दिव्यध्वनि की
जिससे हो गुरणग्रहण प्रकिंचन !
भगवान ! क्या तुम सहन
कर सकोगे इस युग का अर्चन वन्दन ?
जी भर रकम खर्च कर ही
शादी करते अपने लालों की
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