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वीर के अनुयायियों का कला प्रेम
पं० श्री उदय जैन, कानोड़ भावों की अभिव्यक्ति कला कहलाती है। नृत्य-संगीत और अभिनय प्रत्येक प्राणी अपनी कला से भावों की अभिव्यक्ति
जैनियों ने इन कलाओं की रक्षा एव वृद्धि के करता है। छोटे से छोटा प्राणी भी कलाविद होता लिये गंधर्व वर्ग तैयार किया जो समय समय पर है तो मानव जैसा सुज्ञ प्राणी कला के प्रति अधिक जनता में धर्म प्रचार के लिए इन कलाओं का उत्कर्ष करे यह स्वाभाविक ही है। मानव समाज विस्तार करता रहा। मंदिरों में, सार्वजनिक, धार्मिक विश्व के अनेक राष्ट्रों में विभक्त रहा है और रहेगा उत्सवों में तथा जलसों में प्रायः हुन गंधवों का होना मतः कला का उत्कर्ष भी विभिन्न क्षेत्रों में अलग
महत्वपूर्ण माना जाता था । यह वर्ग हर समय और अलग ढंग से होता पाया है।
हर स्थान पर आमंत्रित किया जाता था और सामान्यतया जिसमें मानव समुदाय का आक- बड़े प्रादर से जैनी लोग इनकी खाने, रहने एवं र्षण अधिक हो कला कहलाती है। चौंसठ और भोजन आदि की व्यवस्था के साथ इनाम तथा बहत्तर कलाओं का प्राचीन जैन ग्रन्थों में वर्णन प्रतिफल रूप में उनके परिवार पोषण के लिए मिलता है। स्त्री और पुरुष में कुछ कलाएं समान निश्चित मुद्राए भी देते थे। होती हैं और कुछ भिन्न होती हैं लेकिन दोनों की जैन मन्दिरों में सामान्यतः गण वाद्य यन्त्रों कलानों के वर्णन तथा भेद अलग-अलग माने गये के साथ नृत्य संगीत करते रहते हैं। यह प्रथा
पुरातन काल से चली आ रही है। इसे अच्छा विश्व में नृत्य, अभिनय, संगीत, सूची, काष्ठ, धर्म कायं मानते हैं। अभिनय भी समय समय पर स्थापत्य, क्षेत्र, पाक, निर्माण, मुद्रण, लिपि, संभा- किये जाते रहे हैं। वे गंधों की तरह अपना कार्य षण, चित्र, धातु, चौर्य, शासन, आकर्षण, विज्ञान, करते रहते हैं । गंधर्व समय समय पर अभिनय भी तरना, वक्तृत्व, युद्ध, मूर्ति, इन्द्रजाल, सम्मोहन करते आये हैं। मादि कलाए प्रमुख हैं । जैन ग्रन्थों में सभी कलाओं
चित्रकारी का वर्णन मिलता है। लेकिन प्रमुखतया व्यवहार वृक्ष-पत्र, कागज, ताम्र-पत्र, मित्ति, काष्ठ, में उपयोगी मानकर जिन जिन कलाओं का प्रतीत कपड़ा, भूमि, रेत, एवं पत्थरों पर चित्रकारी का काल में प्रचलन हुआ वे प्रमुख मानी गई, यथा कार्य बहुत ही प्राचीन समय से जैनियों में प्रचलित नृत्य, अभिनय, चित्र, स्थापत्य, मूर्ति, शासन ,पाक, है। ताड़ पत्र एवं अन्य भोज आदि वृक्ष पत्रों पर संभाषण, संगीत, काष्ठ मादि । अतीत में जैनियों चित्रकारी जैन संग्रहालयों मे अभी तक भी सुरक्षित ने उपर्युक्त कलाओं में बहुत रस लिया और धर्म है। बड़े-बड़े भण्डारों में ताम्रपत्र एवं पट पर भी के प्रचार में भी इनका सहारा लिया।
चित्र बहुतायत से पाये जाते हैं। इन कार्यों में जैन
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