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चाहिए और उनका ऋण चुकाने का प्रयास करना होगा यह उसी के कार्यों पर प्रवलंबित होता है । पाहिये।
जब हम शुभ संकल्प करते हैं तो शुभ संकल्पों के हमारी शक्ति घट रही है । हम दूसरों का प्रवाह उस व्यक्ति के हृदय में पहुंच कर उसे शुभ हित या सेवा करने में भी अपने आपको अशक्त की प्रेरणा देते हैं । हमारे समस्त संकल्प वासना. पाते हैं । इसलिए दूसरों की कम से कम सेवा लें। विकार से रहित हों उसमें किसी प्रकार अहंता किसी पर बोझरूप न बने, किसी के मन में अप्रीति या ममता न हो तो वे शुद्ध संकल्प अत्यन्त प्रभावन जगे ऐसा व्यवहार करना चाहिए। चारों ओर कारी होते हैं । जो निश्चित ही दूसरों का हित प्रेम का सौरभ फैन ऐसी ही कोशिश करें।
करते हैं। ___संसार मे और खास कर बुढ़ापे में सेवक या निवृत्ति तभी कल्याणप्रद होती है जब उसमें नौकर-चाकरों की सहायता बहुत उपयोगी राग-द्वेष और पक्षपात न हो । सबके प्रति कल्याण और सुखकर होती है इसलिए उन्हें सन्तुष्ट रखना, की भावना हो। किसी प्रकार का स्वार्थ या कामना उनके दुखदद में काम आना तथा उनके साथ नहीं हो । इन्हीं सब शुभ भावनाओं से मरण सार्थक अच्छा बर्ताव करना चाहिए इसमें हमारा भी हित व सफल होता है। हैं और दूसरों की भी प्रसन्नता ।
जब मृत व्यक्ति की स्मृति व्यापक तथा दीर्घबच्चो की भावना का ख्याल कर, उनके कालीन होती है तभी मरण सार्थक होता है कामों में हस्तक्षेप न कर उनकी शक्ति का विकास क्योंकि मरने के बाद भी समाज में स्मृतिरूप में रुचि, इच्छ व शक्त के अनुसार होने देना मनुष्य जीवित रहता है। मनुष्य के कार्य भोर चाहिये । उन्हें उपदेश न देकर वे मांगे तब उचित विचारों का प्रभाव समाज पर होता है । कई बार सलाह देनी च हिये व उनका इच्छा के अनुकूल, तो जीवित अवस्था से भी मृत्यु के बाद अधिक उन्हें बोझ न मालूम दे ऐसा जवाब दे जो बच्चों पर प्रभाव होता है। हकूमत न करते हुये उनको बुद्धि को जंचे ऐसी जब मनुष्य इस प्रकार कषाय, मोह, ममता बात सहज रूप से समझ वें । वे न मानें तो बुरा न और महंता से मुक्त होकर समाधि-मरण की मानें । उनमें प्रेम और आदर बढाने का यही उपाय साधना करता है तो, वह मुत्यु निर्वाण बन जाती है। पाखिर तो सब कुछ नई पीढ़ी को ही सौंप है, जो अनेकों के मन में निर्वाण प्राप्ति की प्रेरणा कर जाना है। क्यों न हम अपने समक्ष ही उन्हें जागृत करती है। काम करने का अवसर देकर सुयोग्य बनावें । काम भगवान महावीर की भौतिक देह भले ही करने से ही तो शिक्षा मिलती है। कुशलता माती 2600 साल पहले नष्ट हो गयी थी किन्तु फिर है। काम बिगड़े तो भी बिगड़ने दें पर उनको अपनी भी वे प्रमर हैं, उनकी मृत्यु हमारे हृदय में निर्वाण बुद्धि का उपयोग करने का अवसर दें। , प्राप्ति की ज्योति जगाने प्राज भी सक्षम है तभी तो
जब तक हममें शक्ति तो हम दूसरों की भलाई . हम निर्वाण महोत्सव मना कर उनके बताये हुये करें पर जब वह शक्ति न रहे तो अपनी शुभ रास्ते पर जाने के लिये प्रयत्नशील है। भावनाए और सत्संकल्प के द्वारा दूसरों के कल्याण . यदि हम मरण की, भगवान महावीर के की कामना करें। प्रत्यक्ष शरीर के द्वारा भी हुई जैसी ही तैयारी कर निर्वाण प्राप्ति में प्रयत्नशील सहायता से शुभ संकल्प की शक्ति कम नहीं होती बनें तो वह हमारी उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजली क्योंकि पाखिर किसी का भला होना पोर नहीं होगी।
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