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परिणाम हमारे सामने है--विश्वव्यापी चरित्र में होड़ पैदा कर दी कि रहन-सहन का स्तर संकट, मुख प्रौर मशांति ।
कंचा करो, पावश्यकताओं को खूब बढ़ानो चाहे पाश्चात्य भौतिकवाद ने क्या किया- उसके लिए तुम्हारे देश को हमसे कितनी भी यों तो भौतिकवाद संसार में सुख शांति की उधार लेनी पड़े। तभी तुम्हारी गरीबी दूर हुई स्थापना में सदा ही असफल रहा है परन्तु पुराने मानी जावेगी और तुम सभ्य कहला सकोगे । समय में इसका क्षेत्र इने-गिने राजा महाराजामों अस्तु समाज में भौतिक सुख साधन बढ़ाने की प्रादि तक ही सीमित था अतः उस समय अन- तृष्णा प्रवाह रूप में फैल गई। परन्तु उत्पादन तिकता की समस्या एक सीमित क्षेत्र में ही थी। माम जनता की तो मूलभूत आवश्यकताओं को भी माम जनता का जीवन भौतिक महत्वाकांक्षामों पूरा नहीं कर सका और सत्ताधारियों और धनिकों से रहित सादा, संयमी अोर संतोषी होता था। के लिए विभिन्न प्रकार के भोगविलास के साधन मेगस्थनीज, फाह्यान, हनसांग आदि विदशी उत्पन्न हो गये । इसी का परिणाम हैं यह संसार इतिहासकारों तक ने लिखा है कि उस समय भारत व्यापी वर्ग संघर्ष और चरित्र संकट की प्रसिद्ध में लोगों का जीवन सादा तथा वे सरल साहित्यकार जार्ज बर्नार्ड शॉ के शब्दों में डमोक्रेसी और इमानदार होते थे । अपराध बहुत कम होते (लोकतन्त्र) डेमनके सी (राक्षणीतन्त्र) बन गई थे। प्रजा सुखी और धन-धान्यपूर्ण थी। इससे है। अमरीका जिसे संसार का सबसे अधिक प्रगट होता है कि उस समय भौतिकवाद बहुत ही सम्पन्न देश माना जाता है उसकी हालत तो अधिक सीमित क्षत्र में होने से आम जनता का चरित्र बुरी है। वहां अपराध बेकाबू हो गया है। वहां स्तर ऊंचा था, न गरीबी और बेकारी की समस्या के बड़े नगरों में रात्रि में भले नागरिक मकानों थी और न समाजव्यापी चरित्र संकट की। लगभग से बाहर निकलने से डरते है। दिन में पावागमन पही स्थिति अन्य देशों में भी थी।
में खतरे का डर बना रहता है। वहां मानसिक परन्तु पाश्चात्य भौतिकवाद ने जहां भारी
रोग भी बढ़ रहे है, इन रोगों के डाक्टरों की चरित्र संकट पैदा कर दिया वहां इसकी प्रौद्यो
बड़ी मांग है। खूब वैभव होते हुए भी उन्हें
शांति नहीं मिलती प्रतः एल. एस. डी. प्रादि गिक तकनीक ने बेकारी और आर्थिक संकट मी
नशेली दवाइयों व नींद की गोलियों का सेवन पदा कर दिया
करना पड़ता है। कई हिप्पी बन रहे है या शांति _I. चरित्र संकट-आवश्यकता इस बात के लिए भारतीय साधुनों के शिष्य बन रहे हैं। की थी कि प्राधुनिक विज्ञान की सब उपलब्धियों 2. बेकारी और आर्थिक संकट-पुराने के उपयोग को बढ़ती हुई जनसंख्या की मूलभूत समय में उत्पादन की अर्थ व्यवस्था विकेन्द्रित थी। मावश्यकता की वस्तुओं के उत्पादन की कमी मशीनें, मनुष्यों और पशुओं की श्रम शक्ति से को पूरा करने तक सीमित रक्खा जाता। यदि चलती थी और उनमें स्थान-स्थान पर उपलब्ध ऐसा किया जाता तो अभी संसार में शांति का उत्पादन के साधनों तथा मनुष्यों और पशुओं की साम्राज्य होता। परन्तु ऐसा न कर पाश्चात्य श्रम शक्ति का समुचित उपयोग होता था। अतः भौतिकवादी नेतामों तथा उनसे प्रभावित कथित अधिकांश ग्राम स्वावलम्बन पर प्राधारित उस पिछड़े देशों के नेताओं ने गरीबी दूर करने के अर्थ व्यवस्था में मशीनों और उनके लिए बच्चे नाम पर विभिन्न भोगविलास के साधन प्राप्त कर माल के रूप में विदेशों से उधार लेने श्री रहन-सहन का स्तर ऊंचा करने की आम जनता की कोई समस्या नहीं थी। देश का धन देश में
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