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पाश्चात्य भौतिकवाद भोर उसके विनाशकारी परिणाम
बर्तमान चरित्र संकट का कारण भौतिकवाद को बताते हुए माध्यात्मवाद को अपनाने व विज्ञान का प्राध्यात्मवाद के साथ समन्वय करने का उपदेश हम धार्मिक तथा राजनैतिक नेतामों से बहुधा सुनते रहते हैं परन्तु उस उपदेश का प्रभाव कुछ नहीं हो रहा पौर चरित्र सकट की समस्या अधिकाधिक विकट होती जा रही है।
भौतिकवाद क्या है-यह मान्यता कि हम अपने भौतिक सुख साधनों को जितना अधिक चढ़ावेंगे, उतने ही अधिक सुखी होंगे, भौतिकवाद है। परन्तु भूमि भोर उत्पादन के साधन परिमित हैं और जनसख्या वृद्धि रोकने के सब प्रयत्न करने पर भी प्रसिद्ध अर्थशास्त्री मालथस के सिवांत के अनुसार वह ज्यामितिक वृद्धि के नियमानुसार बढ़ती ही जा रही है, उत्पादन, उसकी वदि के सब प्रयत्न करने पर भो. जनसंख्या वृद्धि की तुलना में बहुत पिछड़ा हुआ है। संयुक्तराष्ट्रसंघ के खाद्य और कृषि संगठन के महा संचालक के कथनानुसार अभी भी ससार के दो तिहाई या प्राधे लोंग या तो भूखे रहते हैं या उन्हें ऐसा भोजन मिलता है कि जिससे ठीक पोषण नहीं मिलता। इस प्रकार भौतिकवाद संसार की समग्र जनसंख्या की भूख मिटाने तक में असफल रहा है मौर विश्वशांति का एक मात्र उपाय यही है कि सुख साधनों के बढ़ाने की तृष्णा न रखकर सब संयम से रहें और जो भी उत्पादन हो उसे सब बांट-बांट कर कर लें क्योंकि लोगों में संयम की भावना पैदा कर उनकी तृष्णा को रोक नहीं लगाई जावे तो उत्पादन कितना भी बढ़ा दिया जाये वह सब लोगों की सम्मिलित तृणा की कभी भी पूर्ति नहीं कर सकता और उसका
-श्री बिरषीलाल सेठी
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