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अहिंसा
बनाम
हिंसा
श्री प्रतापचन्द जैन, श्रागरा
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कुछ वर्ष पूर्व अमेरिका, रूस, फ्रांस और जर्मनी ही ऐसे देश के जिनके पास प्रणु बम थे । उसके बादू साम्यवादी चीन भी उन देशों की पक्ति में जा बैठा है। उसने भी प्रणु बम और हजारों मील मार करने वाली मिसायलें बना ली हैं। जब से चीन ने प्रणु बम बना लिये हैं तब से भारत की जनता भी संगठित हो उठी है और यहां भी उसकी मारा उठने लगी है । परन्तु देश के शासन सुरक्षा बीडोर जिनके हाथों में हैं वे बराबर इस मांग से अपनी असहमति दिखा रहे हैं। उनका मत है कि संसार की आणविक शस्त्रीय स्थिति ऐसी बन गई है कि उनके बनाने से हमारी सुरक्षा पर तो कोई खास फर्क पड़ेगा नहीं, क्योंकि जिनके पास वह है वे खुद ही एक दूसरे से भयभीत हैं, हा प्रार्थिक दबाव के कारण देश के विकास कार्यों पर कुप्रभाव श्रवश्य पड़ेगा । बहरहाल इस मांग को लेकर देश का मत विभाजित है। फिर भी अणु शक्ति की खोज और उसका उपयोग देश के विकास कार्यों में करने का प्रयास चल रहा है ।
यह अणु बम कितना भयंकर और कितना विनाशकारी हो सकता है इसका अन्दाजा हमे सहज ही लगा सकते हैं हिरोशिमा और नागासाकी के विध्वंस से । यह घटना द्वितीय महायुद्ध के मध्य 5 अगस्त सन् 1945 की है । जब कि सभ्य अमेरिका ने उन पर अणु बम का विस्फोट कर जघन्य अपराध किया था। वह बम केवल बचा ही था तब भी उसने 80 हजार नागरिकों को देखते देखते मौत के घाट उतार दिया था तथा लाखों को श्राजीवन अपंग बना दिया था । पक्षी तक नहीं बचे थे और पूरा का पूरा नगर मलवे का ढेर बन गया था। यहां तक कि वहां के वायु मंडल
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