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काल की सीमाओं से परे है। युग के सन्दर्भ में करता है। जिनोंने सिद्धि को वरण किया, उन जैन दर्शन की पुनर्व्याख्या की जाए तो माज हम सिद्धों को वन्दन करता हूं। जो प्रहंत होने को एक ऐसे जीवन-दर्शन की कल्पना कर सकते हैं जो प्रयत्नरत हैं. उन प्राचार्यों को नमस्कार करता हूँ। समग्र मानवता के लिए हो। जो सम्पूर्ण विश्व जो यह रास्ता दिखाते हैं उन उपाध्यायों को का जीवन दर्शन हो, जो जन-दर्शन हो।
नमस्कार करता हूं. जितने भी सत्पुरुष इस मार्ग सिद्धान्तों की उदारता और व्यापक दृष्टिकोण पर चल रहे हैं, उन सबको मैं प्रणाम करता हूं। के कारण ही जैन दर्शन ने विकास की इतनी णमो मरिहंताएं। ध्यापक सम्भावनाएं मानीं, कि व्यक्ति से विराट, णमो सिवाणं । मात्मा से परमात्मा, मानव से महामानव और
णमो मायरियारणं । .. जीव मात्र में भगवान बनने की सामर्थ्य का प्रति
गमो उवज्झायारणं । पादन किया। सभी भारतीय दर्शन जहां ईश्वर णमो लोए सव्वसाहूणं । को आदि में रख कर आगे चले वहां जैन दर्शन ने इससे व्यापक दृष्टिकोण और मानवीय मूल्यों परमात्मा को अन्त में रखा और कहा-परमात्मा की प्रतिष्ठा क्या हो सकती है। तो तुम्ही हो । अपने को जानो और स्वयं परमात्मा भगवान महावीर ने जैन दर्शन के इन उदार हो जाओ, अपने को जीतो और स्वयं 'जिन' हो सिद्धान्तों के प्रसार के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन जामो, 'महंत' हो जाओ। अपने को शुद्ध करो अर्पित कर दिया मोर स्वयं सिद्ध हो गये। उनके और स्वयं सिद्ध' बन जाओ।
2500वें निर्वाण शताब्दी वर्ष में यदि हम उनके जैन दर्शन को मंगल मन्त्र है
चिन्तन का अमृत जन-जन तक पहुंचा सके तो जो अहंन्त हो गये, उन सबको मैं प्रणाम बहुत बड़ा पुण्य-कार्य होगा।
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