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सूक्ति-दोहन
जीवन जल के बुलबुले, सम चंचल पहचान । रहिये होश हवास में, छत्र सदा अमलान ||
होता अच्छे कर्म का अच्छा फल बुरे कर्म का फल बुरा, रहता है
मुनिश्री छत्रमलजी
हरबार । तैयार ॥
मधुर वचन से तुष्ट कर देता वस्तु प्रभिष्ट । वह व्यवहारी शिष्ट है, बाकी सभी प्रशिष्ट ॥
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संयम तप जप नियम में, जो होता तल्लीन । उसकी सामायिक सही कहते छत्र प्रवीन ॥ सबको आत्मसमान गिन, समता का व्यवहार । करता वह जाता तुरत, छत्र सिंधु से पार ॥ परिचर्या जो ग्लान की, करता उसको धन्य । महा निर्जरा का यही कारण छत्र अनन्य ॥ बन्दर क्षण भर भी नहीं रह सकता है शान्त । त्यों संकल्प विकल्प युत, मन भी सदा प्रशांत ॥
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