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दूसरा उपाय समाजवाद बतलाता है। सत्ता . प्रिन्स क्रोपाटकिन ने अपने आत्मचरित में एवं कानून के बल पर यह समानता लाने का प्रयत्न अपरिग्रह का सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत किया है । करता है । तरह-तरह के टैक्स एवं कानूनों के उसने एक ऐसे कम्पोजीटर का वृत्तान्त लिखा है, द्वारा धनिक और गरीब वर्ग को एक वर्ग में बदल जो एक साम्यवादी प्रेस में काम करता था। देना ही इसका ध्येय है। बलपूर्वक किए गए कार्य जेनेवा में एक बार वह कागज की एक छोटी सी का विरोध अवश्य होता है और जहां विरोध होता पार्सल बगल में दबाए हुए चला जा रहा था। है वहाँ संघर्ष की उत्पत्ति होती है। इस प्रकार क्रोपाटकिन ने उससे पूछा, “कहो भाई जोन ! शान्ति के कार्य का प्रारम्भ ही विरोध एवं संघर्ष क्या स्नान के लिए चल दिए ?" उसने उत्तर से होता है, तो फिर उनसे कार्य की लक्ष्य प्राप्ति- दिया, "नहीं तो, मैं अपना सामान दूसरे मकान में समानता, प्रेम आदि कैसे सम्भव हैं?
लिए जा रहा हूं।" कागज की एक छोटी-सी इन सभी समस्याओं के समाधान की शक्ति पार्सल ही उसका सम्पूर्ण परिग्रह था। अपरिग्रह भगवान महावीर के अपरिग्रह में विद्यमान है। का इससे प्रभावशाली उदाहरण और कहाँ मिलेगा। अपरिग्रह शांति का अग्रदूत है। इसी के द्वारा सभी धर्म अपरिग्रह की अपरिमित शक्ति की समाजवाद का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। यही सराहना करते हैं । लोभ और मोह का निराकरण समाजवाद की प्रथम स ढ़ी है । पहिले धनिक वर्ग सभी धर्मों में मिलता है। पश्चिमी विद्वानों ने भी को ही प्रारम्भ करना च हिए। वह अपना बड़ा । परिग्रह को दुख का मूल कारण कहा है । प.श्चात्य परिग्रह छोड़ें, तो निघनों को पेट भर भोजन मिल कवि शेक्सपियर ने कहा है- Gold is worse सकेगा। परिग्रह कम करने से सच्चा सुख और pioslen to men's souls than any mortal सन्तोष बढ़ता है। सेवा क्षमता बढ़ती है । अभ्यास drug. के द्वारा व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं को कम कर प्रर्थात् सभी प्रकार के विषैले पदार्थों में मनुष्य सकता है। जितनी जरूरत हो उतनी वस्तु रखे की प्रात्मा के लिए धन सबसे भयंकर विष है।
और उससे अधिक का वह समाज मे, गरीब में यूनानी दार्शनिक सुकरात का कथन है :वितरण कर दे। मह वीर का यह अपरिग्रह- He is the richest who is content सिद्धान्त युद्धों को रोकने वाली ढाल है। एक देश with the least. दूसरे देश पर प्राक्रमण करता है केवल परिग्रह के अर्थात् वह पुरुष सबसे बड़ा सम्पत्तिशाली है. लिए. सचय के लिए। परिग्रह को छोड़ दिया जाय, जो थोड़ी सी सम्पत्ति से सन्तुष्ट रहता है । तो युद्ध भी न रहें। अपरिग्रह से हिंसा, प्रेम एवं सहानुभूति की भावना को बल मिलता है । अपरि- युग के लिए अत्यन्त उपयोगी है । यह तो रामबाण ग्रह का सिद्धान्त महावीर का महान पोर पवित्र औषधि है । सभी शांति प्रेमी व्यक्तियों को चाहिए सिद्धान्त है। सभी दुष्परिणामों से छुटकारा पाने कि वे अपरिग्रह को अपनाकर अपने जीवन को एवं शांति की प्रतिष्ठा के लिए एक ही मार्ग है, शान्त और सरस बनाने का प्रयत्न करें। यही
वह है अपरिग्रह का सिद्धान्त । यह बीमारी की भविष्य को अधिकाधिक उज्ज्वल बनाने का एक । जड़ को ही समूल नष्ट करने की बात करता है। मात्र साधन है । इसी में समाज, राष्ट्र एवं विश्व इसलिए अधिक सफलीभूत हुआ है ।
का कल्याण सन्निहित है ।
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