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दीप जले -श्री घासीराम जैन 'चन्द्र' शिवपुरी
जग मग जग मग नव दीप जले ।
हैं
आज प्रफुल्लित वृक्षलता, डग डग में फैली सुन्दरता । कण करण में आनन्द बरस रहा।
जग सजग हुवा मन हरष रहा ।
चढ़ त्याग तपस्या के रथ पै शिव पथ साधक प्रभु वीर चले।
____ जग मग जग मग नव दीप जले ।।
शसि किरण चली अस्ताचल में, वर भानु उदित छिति अंचल में। तारक माला छवि क्षीण हुई
है मधुर अरुणिमा जल थल में । निशि से प्रभात की प्रभा मंजु मिल रही आज भर प्रेम गले ।
जग मग जग मग नव दीप जले। वरवस बरसा पड़ता कंचन, सब टूट गये भव के बंधन, त्रिभुवन बोला कर कर वंदन,
जय हे जय हे त्रिशलानंदन ।
पाये हमने वरदान विपुल भारत के अनुपम भाग भले ।
जग मग जग मग नव दीप जले ।।
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