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आध्यात्मिक ऊर्जा के केन्द्रक :
भगवान महावीर
-डॉ. देवेन्द्रकुमार शास्त्री संसार रूपवान है। यहां तरह-तरह के रूप अनन्त दीपों से 'दीपमालिका' के रूप में मनाई हैं, जो सदा स्थिर नहीं रहते । रूप सहज ही परि- जाती है। अनन्त ऊर्जा के केन्द्रक भगवान महावीर वर्तित होते रहते हैं। उन में रूपान्तरण की क्रिया को अनन्त ज्ञान उपलब्ध हुअा था और वे सिद्ध भी लक्षित होती है । विज्ञान की सहायता से उन हो कर निर्वाण को प्राप्त हुए थे। यही कारण है में जब चाहे, तब रूपान्तरण किया जा सकता है। कि अधिक से अधिक दीपों को प्रज्वलित कर रूप द्रव्य की पर्याय है । यह रूपान्तरण तभी होता दीपावली पर्व मनाया जाता है । भगवान महावीर है, जब सांयोगिक दशा होती है। रूपान्तरण की ने मोह-तिमिर का विनाश कर अक्षय, अनन्त निर्वाण अपनी प्रक्रिया और विज्ञान है । जैनधर्म इस आलोक प्राप्त किया था। निष्कम्प दीपशिखा की विज्ञान को प्रस्तुत करता है और कहता है कि यह भांति उन्होंने परमज्योति उपलब्ध की थी। वह संसार संयोग-दशा है। जीव और कर्म-परमाणुनों ज्योत क्या था ? मोह पर ज्ञान की विजय, अन्धकार के संयोग सम्बन्ध का नाम संसार है। संयोग दशा पर प्रकाश का अधिकार था । हम लोगों को तो वह में द्रव्य की मल शक्तियों का, अनन्त ऊर्जामों का पालोक प्राप्त नहीं है । मोह के दास और गुलाम सहज प्रकटन एवं स्फुरण नहीं हो सकता। जो बने हर है इसलिए और कुछ नहीं तो केवल प्रकिसंसार के सायोगिक रसायनों से अलिप्त रह कर चन मिट्टी के दीपों में स्नेह रूपी तेन उडेल कर द्वेष अपनी मूल ऊर्जा को प्रवाहित कर लेता है, वह रूपी बात्तयो को जलाने का प्रयत्न करते है । भगवान मात्मा से परमात्मा बन जाता है। भगवान महा- महावीर अपनी ध्यानाग्नि से राग-द्वेष को जलाकर वीर ने राग-द्वेष के रासायनिक विकारों से अस- वीतरागी बने थे। उसी प्रादर्श की स्मृति में यह म्पृक्त हो कर अपनी प्राध्यात्मिक ऊर्जा को संचेतना दीपावली का महान पर्व लगभग ढाई हजार वर्षों के माकाश में सभी ओर से निर्बन्ध एवं निर्मुक्त से मनाया जा रहा है। कर अनन्त चेतना के व्यापार को पालोकित कर भगवान महावीर किसी लोक से भगवान बन दिया था। उस पालोक की स्मृति स्वरूप कार्तिक कर नहीं आए थे। जन्म-जन्मान्तरों की साधना से कृष्ण अमावस्या को भारतवर्ष में घर-घर दीप तपःपूत हो कर वज्र की काया में मनुष्य जन्म प्रज्वलित किए जाते हैं । क्योंकि भगवान महावीर पाया था । नर से नारायण बन कर अपनी आत्माको इस दिन 'कैवल्यबोध' या 'केवलज्ञान' प्राप्त साधना के द्वारा सर्वज्ञ पद प्राप्त किया था । ईस्वी हुमा था। भारतीय संस्कृति व साहित्य में दीपक पर्व 527 में राजगृह के निकट पावापुर में जिस मान का प्रतीक है । दीपावली एक से नहीं, किन्तु क्षण भगवान को निर्वाण हुआ था, उसी समय देव
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