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स्त्री समाज की निर्मात्री है, संरक्षिका है और विकट अत्याचार का तूफान उसकी सत्य-श्रद्धा को भाग्य विधात्री है। सन्तानों में संस्कार निर्माण हिला नहीं सकता और कोई भी कष्ट का सागर का कार्य माताओं के हाथ में ही रहता है । वे जिस उसके धैर्य को गला नहीं सकता। सहिष्णुता के मृदुता और सौहार्द से समाज में निर्माण का वरिष्ठ विषय में वह पुरुषवर्ग के समक्ष एक उच्चादर्श है। कार्य करती हैं अनेक पिता भी नहीं कर सकते। महिला वर्ग पुरुष वर्ग के समान ही हर कार्य किसी कवि ने बहुत ही महत्वपूर्ण उद्गार व्यक्त का दक्षता पूर्वक संचालन कर सकता है। माध्या. किये हैं :
त्मिक, शैक्षणिक, साहित्यिक, वैज्ञानिक, राजनैतिक, . "सहस्र'तु पितृन् माता गौरवेणातिरिच्यते” व्यावसायिक और पारिश्रमिक प्रदि प्रत्येक क्षेत्र में . हजारों पितामों से एक माता गौरव में श्रेष्ठ महिलाएं अपनी अद्भुत क्षमता प्रदर्शित कर चुकी होती है। किसी पाश्चात्य विचारक ने कहा है- हैं। फिर भी पुरुष वर्ग उन्हें समानता का अधिकार 'एक जननी सौ अध्यापकों से बढकर संस्कार शिक्षा नहीं दे पा रहा है। अपने पैरों तले रौंदने की ताक देती है।'
में बैठा है देश-विदेशों में नारी स्वातन्त्र्य के कितने ___ मनुस्मृति में मनु महर्षि ने भी नारी के प्रति ही प्रान्दोलन चल रहे हैं। कितनी ही क्रान्ति की बड़ी प्रतिष्ठामयी और उच्च भावना प्रकट की है- चिनगारियां उछल रही हैं लेकिन पुरुष वर्ग की ।
“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः" मात्मा प्रभी जागृत नहीं हो पाई। ... जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता रमण पुरुष समुदाय को यह पूर्ण निश्चय कर लेना करते हैं। वस्तुतः ही नारी समाज का महत्वपूर्ण चाहिये कि नारी जागरण में ही समाज जागरण अर्धांग है। समाज विकास के अनुष्ठान में पुरुष से निहित है। समाज का सर्वागीण उत्थान एवं भी अधिक भूमिका वह अदा करती है। उसे कल्याण महिला-उस्थान तथा महिला कल्याण पर प्रशिक्षित, उपेक्षित और अधिकार हीन रखना समाज ही निर्भर है। को अधिक विकल बनाना है।
प्रस्तुत वर्ष भगवान् महावीर निर्वाणोत्सव के नारी यथार्थ में सद्गुणों का पुज है। उसकी रूप में मनाया जा रहा है और साथ ही यह अन्तर विमल विशेषताओं पर समाज का महाप्रसाद राष्ट्रीय नारी वर्ष भी उद्घोषित हो चुका है। अविचल खड़ा है । इतिहास साक्षी है लोगों ने उस ऐसे सुप्रवसर पर पुरुष वर्ग का कर्तव्य है कि नारी पर भीषण अत्याचार किये हैं, पर उसकी सहिष्णुत! को शिक्षा दीक्षा के लिए उन्मुक्त करे और उसके कभी नहीं टूटी। कोई भी यातना का सूर्य उसकी सर्वांगीण विकास के लिए उसको उसका स्वामित्व सहिष्णुता को उत्तप्त नहीं कर सकता, विकट से सौंपकर ममाज को उन्नति के शिखर पर चढ़ाए ।
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