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वर्तमान समय में बुद्ध वचन की प्रासंगिकता
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अज्ञान् रूप, असन्तोषपूर्ण और निरानन्द है । उन्होनें समझाया कि हमारी मूर्खताभरी इच्छाएँ हमें दुःखी बनाती है । सुखी होने के लिए व्यक्ति को नए हृदय की और नई आँखो से देखने की आवश्यकता है।' अच्छे व्यवहार और आभिजात्य को वे तपश्चर्या से अधिक महत्त्व देते थे ।
भारत जो कि धार्मिक सहनशीलता की भूमि है, उसकी आत्मा और आदर्श के प्रति सच्चे बुद्ध के शब्दों और व्यवहार किसी में भी जरा भी असहनशीलता का आभास नहीं मिलता। किसी भी अवसर पर हम बुद्ध को क्रोधित होते या कड़े से कड़े समालोचक के प्रति कोई कटु या निष्ठुर मन्तव्य करते नहीं पाते हैं। कभी कभार हम उन्हें यज्ञाग्नि के निकट ब्राह्मण के पास बैठे धार्मिक आलोचनारत देखते हैं, पर उसके विश्वास और उपासक को बिना ठेस पहुँचाये । और कभी वे नवीन धर्मान्तरित सीह जो कि पहले जैनी थे को उपदेश देते हैं, कि वह पहले जैसे ही घर पर आये जैन सन्यासियों को भोजन और उपहार दे । बुद्ध को धर्मान्तरित करने में बहुत ही कम दिलचस्पी है। एक बार हम देखते हैं कि एक गृहस्वामी ने बड़े ही कटु शब्दो में उन्हें खदेडा वे बडे ही शिष्ट और मैत्रीपूर्ण शैली में उससे पूछा है - प्रिय मित्र ! अगर कोई गृहस्वामी किसी भिखारी के आगे भोजन रखता है और भिखारी उसे ग्रहण करने से इन्कार कर देता है तो वह भोजन किसका होता है? वह व्यक्ति, उत्तर देता है- " अवश्य ही गृहस्वामी का " । बुद्ध उत्तर देते है- ते मैं तुम्हारी कटु शब्दों और असदिच्छा को ग्रहण करने से इन्कार कर देता हूँ, वे अवश्य ही तुम्हारे पास लौट जायेगें पर मैं यहाँ से अधिक गरीब होकर लौटूंगा क्योंकि मैनें अपना एक मित्र खो दिया । "
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बुद्ध का उददेश्य समतावादी समाज का निर्माण नहीं था। वे चाहते थे कि तनाव और निरानन्दमय परिस्थितियाँ जड़ से दूर हों जिससे सभी के लिए शक्ति, और आनन्द, विराजित हों। वे अपने अनुयायियों से कहते हैं कि हर प्राणी के प्रति प्रेमभाव से वे लोग अपना हृदय भर लें और घृणा, विद्वेष आदि बुरी भावनायें मिटा दें। उनका कहना है कि 'शत्रुता शत्रुता से नहीं मिटती, वह सिर्फ मैत्री से ही मिट सकती है—
१. Radhakrishnan s Dhammapada. Intr. 13
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