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________________ श्रमण विद्या हिमालय के एक छोर लेह-लद्दाख, लाहुल-स्फीति और किन्नौर के बाद दूसरे शिखर सिक्किम में बौद्ध अध्ययन विधिवत् आरम्भ हुआ है । राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर आयोजित सम्मेलनों, संगोष्ठियों, परिचर्चाओं में संकाय के सदस्यों की सहभागिता से हमारे अकादमिक सम्पर्को का नैरन्तर्य दृढ़ हुआ है । सागर पार के देशों की यात्रा से हमारे शैक्षिक-सांस्कृतिक सम्बन्ध और अधिक व्यापक हुये हैं। श्रमणविद्या संकाय में 'भारतीय विद्या, संस्कृति एवं संस्कृत प्रमाणपत्रीय, अनुभाग को पूर्ण विभाग का दर्जा प्राप्त होने से विदेशी छात्रों के आकर्षण में वृद्धि हुई है। संकाय के अनुसन्धाताओं और अध्यापकों ने महत्वपूर्ण विषयों पर निबन्ध और शोध प्रबन्ध प्रस्तुत किये हैं। प्राचीन ग्रन्थों के सम्पादन कार्य को आगे बढ़ाया है तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सहयोग से राष्ट्रीय स्तर के आयोजनों का क्रम जारी रखा है। इस सबका विस्तृत लेखा-जोखा यहाँ प्रस्तुत करना अभीष्ट नहीं है। यह सहयोगी प्रयासों की ओर एक इंगित मात्र है। ___ इस पूरी अकादमिक यात्रा में प्रोफेसर जगन्नाथ उपाध्याय के अभाव की हमें गहराई से अनुभूति होती रही है। वे इन सभी प्रवृत्तियों के पुरोधा और प्रेरणास्रोत थे। उनका स्मरण हमें कार्य करने की प्रेरक ऊर्जा प्रदान करता रहे, यह कामना है । हमारा हर अगला कदम उनके प्रति हार्दिक श्रद्धाञ्जलि है। श्रमणविद्या संकाय के इस एक और सामूहिक प्रयत्न की प्रस्तुति पारस्परिक सौहार्द और सहयोग की एक सुखद अनुभूति है। इस भाग के सम्पादक मंडल तथा लेखन-सम्पादन सहयोग के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर व्ही. वेङ्कटाचलम के सौजन्य और मार्गदर्शन से कार्यों को आगे बढ़ाने में बल मिला है। उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ। प्रकाशनाधिकारी डॉ. हरिश्चद्रमणि त्रिपाठी के हम विशेष आभारी हैं, जिनका सहयोग हमें हर प्रकाशन कार्यक्रम में उपलब्ध होता रहा है। प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में अन्य जिनका भी सहयोग रहा है, उन सबके प्रति हम कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। सभी प्रकार की सावधानी रखने के बाद भी त्रुटियाँ सम्भव हैं। कुछ का हमें स्वयं बोध है । विज्ञ जन उनके परिमार्जन पूर्वक इसे स्वीकार करेंगे, ऐसा विश्वास है । गोकुलचन्द्र जैन संकाय पत्रिका-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014029
Book TitleShramanvidya Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1988
Total Pages262
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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