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श्रमण विद्या - २
अन्यत्र गौतम पूछते हैं कि भगवन् ! क्या छदमस्थ मनुष्य शाश्वत, अनन्त, तथा अतीत काल में केवलसंयम, केवलसंवर, केवलब्रह्मचर्यवास तथा केवलप्रवचनमाता के पालन से सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, परिनिवृत्त, एवं सर्व दुःखों का अन्त करने वाला हुआ है ? इसके उत्तर में भगवान् कहते हैं - गोतम ! ऐसी बात नहीं है । जो कोई भी मनुष्य कर्मों का अन्त करनेवाले, चरमशरीरी - अन्तिम शरीर वाले हुए हैं, अथवा जिन्होंने समस्त कर्मों का अन्त किया है, अन्त करते हैं, या करेंगे, वे सब उत्पन्न ज्ञानदर्शनधारी, अर्हन्त, जिन, केवली होकर तत्पश्चात् सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त हुए हैं, उन्होंने समस्त दुःखों का अन्त किया है, वे ही करते हैं, और करेंगे । ६१
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राजगृह नगर में गौतम महावीर से पूछते हैं- भते ! केवली आदि से धर्मं श्रवण किये विना ही क्या कोई जीव शुद्ध संवर से संवृत होता है ? इसके उत्तर में महावीर कहते हैं - गौतम ! कोई जीव केवली आदि से धर्म श्रवण किये विना ही शुद्ध संवर से संवृत होता है, और कोई जीव नहीं होता, क्योंकि जिस जीव ने अध्यवसानावरणीय कर्मों का क्षयोपशम किया है, वह केवली आदि से सुने विना ही शुद्ध संवर से संवृत हो जाता है, किन्तु जिसने अध्यवसानावरणीय कर्मों का क्षयोपशम नहीं किया है, वह जीव केवली आदि से सुने विना शुद्ध संवर से संवृत नहीं होता । ६२
गोतम एक और प्रश्न करते हैं -- भंते ! क्या कोई जीव केवली, केवलीपाक्षिक, उपासिका आदि से धर्म श्रवण किये विना केवलीप्ररूपित धर्म-श्रवण-लाभ करता है, शुद्ध बोधि प्राप्त करता है, शुद्ध संयम एवं संबर से संवृत होता है ? इसके उत्तर में महावीर कहते हैं -- गौतम ! जिस जीव ने ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय,
वयासी - थेरा सामाइयं न याणंति, थेरा सामाइयस्स अट्ठ न याणंति... थेश संवरं न याणंति, थेरा संवरस्स अट्ठे न याणति । तए णं थेरा भगवंतो कालासवे सियपुत्त अणगारं एवं वयासी – जाणामो णं अज्जो ! • जाणामो सामाइयं, जागामो णं अज्जो ! सामाइयस्स अट्ठ
• संवरं संवरस्स अट्ठं । आया णे अज्जो ! सामाइए, आया णे अज्जो ! सामाइयस्स अट्ठे । ... आय णे अज्जो ! संवरे, आया णे अज्जो ! संवरस्स अट्ठे
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६१.
६२.
संकाय पत्रिका - २
वही, ५।११५, ७।१५६ ।
वही, ९।१९, १२० ।
- भगवइ १।४२३, ४२४, ४२६ ।
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