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________________ कसायपाहुडसुत्तं १५३ 199) एक समय में बँधे हुए और नाना समयों में बँधे हुए समय प्रबद्धों के शेष कितने कर्म-प्रदेश कितने स्थिति और अनुभाग विशेषों में पाये जाते हैं ? इसी प्रकार एक भव और नाना भवों में बँधे हुए कितने कर्मप्रदेश कितने स्थिति और अनुभागविशेषों में पाये जाते हैं ? एक समय रूप एक स्थितिविशेष में वर्तमान कितने कर्मप्रदेश एक-अनेक समयप्रबद्ध और भवबद्धों के शेष पाये जाते हैं ? 200) एक स्थितिविशेष में नियम से एक-अनेक भवबद्धों के समयप्रबद्ध शेष, एक अनेक समयों में बँधे हुए कर्मों के समयप्रबद्ध शेष असंख्यात होते हैं, जो नियम से अनन्त अनुभागों में वर्तमान होते हैं। 201) एक को आदि लेकर एक-एक बढ़ाते हुए जो स्थिति वृद्धि होती है, उसे 'स्थिति उत्तर श्रेणी' कहते हैं। इस प्रकार की स्थिति उत्तरश्रेणी में असंख्यात भवबद्ध शेष तथा समयप्रबद्ध शेष पाये जाते हैं। 202) जिस एक स्थिति विशेष में समयप्रबद्ध शेष तथा भवद्ध शेष सम्भव हैं, वह सामान्यस्थिति और जिसमें वे सम्भव नहीं, वह असमान्यस्थिति कहलाती है। उस क्षपक के वर्ष पृथकत्वमात्र विशेष स्थिति में तादृश अर्थात् भवबद्ध और समयप्रबद्ध शेष से विरहित असामान्य स्थितियाँ अधिक से अधिक आवली के असंख्यात भाग प्रमाण पायी जाती हैं। 203) इस अनन्तर प्ररूपित आवली के असंख्यातवें भाग प्रमाण उत्कृष्ट अन्तर से उपलब्ध होने वाली अपश्चिम (अन्तिम) असामान्य स्थिति के समय में अर्थात् तदनन्तर समय में पायी जानेवाली उपरिम स्थिति में भवबद्ध शेष और समय प्रबद्ध शेष नियम से पाये जाते हैं और उसमें अर्थात् क्षपक की अष्ट वर्ष प्रमाण स्थिति के भीतर उत्तरपद होते हैं। 204) मोह के निरवशेष अनुभाग सत्कर्म के कृष्टिकरण करने पर कृष्टिवेदन के प्रथम समय में वर्तमान जीव के पूर्वबद्ध (ज्ञानावरणीयादि) कर्म किन स्थितियों में और किन अनुभागों में शेष रूप से पाये जाते हैं ? बध्यमान और उदीर्ण कर्म किन-किन स्थितियों और अनुभागों में पाये जाते हैं ? 205) मोहनीय कर्म के कृष्टिकरण कर देने पर नाम, गोत्र और वेदनीय ये तीन कर्म असंख्यात वर्षोंवाले स्थितिसत्त्वों में पाये जाते हैं। शेष चार घातिया कर्म संख्यात वर्ष प्रमाण सत्त्व युक्त होते हैं। संकाय-पत्रिका-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014029
Book TitleShramanvidya Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1988
Total Pages262
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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