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________________ कसा पाहुडत्तं 102) सम्मामिच्छाइट्ठी दंसणमोहस्स अबंधगो होइ । वेदयसम्माइट्ठी खीणो वि अबंधगो होइ || 103) अंतोमुहुत्तमद्धं सव्वोवसमेण होइ उवसंतो । तत्तो परमुदयो खलु तिण्णेक्कदरस्स कम्मस्स | 104) सम्मत्तपढमलंभो सव्वोवसमेण तह वियड्ढेण । भजिव्व य अभिक्खं सव्वोवसमेण देसेण || 105) सम्मत्तपढमलं भस्साणंतरं पच्छदो यमिच्छत्तं । लभस्स अपढमस्सदु भजियव्वा पच्छदो होदि ॥ 106) कम्माणि जस्स तिष्णि दु नियमा सो संकमेण भजियव्वो । एयं जस्स दु कम्मं संकमणे सो ण भजियव्त्रो ॥ 107) सम्माइट्ठी जीवो सद्दहदि पवयणं नियमसादु उवइट्ठ | सहृदि असम्भावं अजाणमाणो गुरुणिओगा || 108) मिच्छा इट्ठी नियमा उवइट्ठ पवयणं ण सद्ददि । सद्दहृदि असब्भावं उवइ वा अणुवइट्ठ | सम्मामिच्छाइट्ठी सागारो वा तहा अणागारो । अध वंजणोग्गहम्मि दु सागारो होइ बोद्धव्वो । 110) दंसणमोहक्खवणा पट्ठवगो कम्मभूमिजादो हु । यिमा म सगदी पिट्ठवगो चावि सव्वत्य ॥ 111 ) मिच्छत्तवेदणीए कम्मे ओवट्टदम्मि सम्मत्ते । खवणाए पट्ठवगो जहण्णगो तेउलेस्साए || 109) 112) 113) Jain Education International अंतोमुहुत्तमद्धं दंसणमोहस्स पियमसा खवगो | खण देवमस्से सिया वि णामाउगो बंधो ॥ खवणाए पट्ठत्रगो जम्हि भवे नियमसा तदो अण्णे । धिगच्छदितिणिभवे दंसणमोहम्मि खीणम्मि || 107 - 8. cf. गोम्मट, जीव. गा. 27-28. 110. cf. वही, गा. ६४८. For Private & Personal Use Only १२१ संकाय पत्रिका-२ www.jainelibrary.org
SR No.014029
Book TitleShramanvidya Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1988
Total Pages262
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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