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________________ जैन परम्परा में श्रमण और उसकी आचार संहिता २५९ शमन से तात्पर्य इन्द्रिय निग्रह, शान्ति, क्षमा और दमन है । अतः जो श्रमण सदा अप्रमत्तभाव से संयम, समिति, ध्यान, योग, तप, चारित्र और करण से युक्त होता है वह पापों का शमन करनेवाला कहलाता है। वस्तुतः उपशम (शान्ति) को श्रामण्य (श्रमण धर्म) का सार भी कहा गया है।' श्रमण के भेद कषायों का उपशमन, राग-द्वेष की निवृत्ति तथा शान्ति और समतारूप श्रमण धर्म है। इसे प्राप्त करने के उद्देश्य से श्रमण जीवन में चारित्र को सर्वोपरि माना गया है। आचार्य कुन्दकुन्द ने कहा है "वास्तव में चारित्र ही धर्म है, जो धर्म है वह साम्य है और ऐसा साम्य मोहक्षोभरहित आत्मा का परिणाम है । चारित्र की दृष्टि से श्रमण के सराग चारित्रधारी और वीतराग चारित्रधारी-ये दो भेद किये गये हैं। अशुभ राग से रहित तथा व्रतादिक रूप शुभ राग से युक्त श्रमण सरागचारित्रधारी कहलाता है तथा अशुभ एवं शुभ दोनों प्रकार के राग से रहित श्रमण वीतराग'चारित्रधारी होता है। उपयोग की दृष्टि से भी श्रमण के दो भेद हैं-शुद्धोपयोगी तथा शुभोपयोगी। शुद्धोपयोगी श्रमण कर्मों के आस्रव से रहित तथा शेष सब शुभोपयोगी श्रमण कर्मों के आस्रववाले होते हैं।' नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव-इन चार निक्षेपों की दृष्टि से श्रमण के चार भेद हैं। इनमें किसी वस्तु का श्रमण यह नाम रखना “नामश्रमण" है। काष्ठ, धातु आदि से श्रमण की आकृति बनाकर उसमें श्रमणत्व की स्थापना करना स्थापनाश्रमण है। गुणरहित श्रमणवेष धारण करना द्रव्य श्रमण है, तथा मूलगुण एवं उत्तरगुण के १. णिच्च च अप्पमत्ता संजमस मिदीसु झाण जोगेसु । तवचरणकरणजुत्ता हवंति समणा समिदावा ॥ मूलाचार ९।९६ २. "उपशमसारं सामण्णं"-बृहत्कल्पसूत्र प्रथम उद्देशक, अधिकरणसूत्र । ३. चारित्तं खलु धम्मो, धम्मो जो सो समो त्ति णिद्दिट्ठो। मोहक्खोह बिहीणो परिणामो अप्पणो हु समो ।। प्रवचनसार १.७ । नयचक्र ३३० । ५. समणा सुद्ध वजुत्ता सुहोवजुत्ता य हों ति समयम्हि । तेसु वि सुद्ध वजुत्ता अणासवा सासवा सेसा ॥ प्रवचनसार ३.४५ । संकाय पत्रिका-१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014028
Book TitleShramanvidya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size14 MB
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