SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अहिंसा : अध्ययन की एक दिशा "न चेव नो चित्तं विपरिणतं भविस्सति, न च पापिकं वाचं निच्छारेस्साम, हितानुकम्पी च विहरिस्साम, मेत्तचित्ता न दोसन्तरा ॥" । (मज्झि० ककचूपमसुत्त) दो सीमाओं में स्थित नदी के पानी को लेकर लिच्छवी और बज्जियों के बीच होने वाले संघर्ष को बुद्ध द्वारा बचाने का प्रयास, उनके द्वारा अंगुलिमाल जैसे भयङ्कर डाकुओं को सुधारने का प्रयत्न अहिंसक प्रयोगों की सफलता का निदर्शन है। जैन एवं बौद्ध साहित्य में वर्णित ऐसी घटनाओं का वैज्ञानिक अध्ययन करके अहिंसा की शक्ति की व्यापक सम्भावनाएँ समझी जानी चाहिए। . अहिंसा : अध्ययन सामग्री यह जानने की बात है कि बौद्ध एवं जैन धमों के अनुयायियों उनके गणतन्त्रों और राजाओं द्वारा समाजसुधार और धर्मप्रचार का कौन सा अहिंसक मार्ग अपनाया गया था, जिससे कहीं भी विपक्षियों के खून का एक कतरा भी नहीं गिरा और शताब्दियों-शताब्दियों तक प्रजा पर श्रमण विचारों का प्रभाव छाया रहा। देश में ही नहीं, सुदूर विदेशों तक सैकड़ों और हजारों की संख्या में निहत्थे बौद्ध भिक्षु पहुंच कर धर्म का अटूट प्रभाव स्थापित कर सके थे। उसके पीछे कुछ ऐसी अदम्य शक्तिओं का संकेत हैं, जिससे हजारों कुर्बानियों के बाद भी पीछे न हटकर उसकी प्रेरणा से धर्म आगे ही बढ़ता गया। हमें एशिया के विभिन्न देशों के ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर उस कार्यविधि का अध्ययन करना होगा। अवश्य ही उससे विभिन्न प्रकार के अहिंसात्मक प्रयोग सामने आयेंगे । अपने देश में ही अशोक और उनके पुत्र एवं पौत्र, कनिष्क, कलिंगराज खारवेल, गुर्जर प्रतिहार सिद्धराज, कुमारपाल, धर्मपाल, आदि ऐसे दर्जनों ऐतिहासिक राजाओं के नाम हैं, जिनकी शासन विधि के आधार पर हम ऐसे निष्कर्ष निकाल सकते हैं, जो अहिंसा के विकास में महत्त्वपूर्ण सिद्ध होंगे। अहिंसा के सम्बन्ध में किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए श्रमण एवं ब्राह्मणों द्वारा अहिसा या हिंसा की श्रेष्ठता और उपयोगिता सिद्ध करने के लिए काव्य, कथा, पुराणों और जातकों में लिखित ऐतिहासिक अर्ध-ऐतिहासिक या अनैतिहासिक घटनाओं के संयोजन करने का जो भावात्मक एवं कलात्मक प्रयास किया गया है, उससे भारतीय संस्कृति के हिंसा-अहिंसा प्रधान पक्षों पर महत्त्वपूर्ण आलोक पड़ता है। उससे दोनों पक्षों की समन्वयात्मक प्रवृत्ति का भी अध्ययन होता है। इसमें महाभारत के अनेकानेक स्थल जैसे श्रीमद्भगवद्गीता आदि, अश्वघोष, कालिदास के काव्य-नाटक, आर्यशूर, सुबन्धु, बाण के काव्य सहायक होंगे। इसी प्रकार प्राकृत काव्य और अन्य जैन ग्रन्थों में पउमचरिय, रयणचूडरायचरिय, निशीथ-चूणि, संकाय पत्रिका-१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014028
Book TitleShramanvidya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy