________________
गाहानुषकमणिआ
गाहाकमो
35
65 94 147
5
284
30 168 176
235
106
64
पढम पादं अइबालबुड्ढरोगामि भूय अकय णिदाणो सम्मो अडविगिरिरलमज्झे अणिमा महिमा लहिमा अनुकूलं परियणयं अथिरं जीवं रिद्धि अथिराण चंचलाण य अभयपयाणं पढम अमयसमो पत्थि रसो अहिसेयफलेण णरो अंतरमुत्तमज्झे आरंभसयाइंजणो आयाराई सत्थं आयंबिलणि व्वियडी अलिउं जपहु दुव्वयणु आवइहि पि पढिज्जइ आहारमओ देहो आहारासणे देहो आहारासणणिद्दा इक्कं चिय जीवदया इच्चेवमाह काइय इति पच्चक्खा एसो इय एसो णवकारो इय चितंतो पसरद इय जाणिऊण एवं इय णाऊण असारे इय बहुकालं सग्गे इय संखेवं कहियं
गाहाकमो पढम पाद
129 इह परलोयसुहाणं 268 इह लोय म्मि वि कज्जे
22 उच्चारिऊण मंतं 273 उज्जाणम्मि रमंता 276 उड्ढमहोतिरिय म्हि 43 उत्तमकुले महल्लो 51 उत्तमणाणपहाणो
उत्तममज्झजहण्णं 124 उत्तविहाणेण तहा
उद्दिटुपिंडविरओ 269
उप्पण्णो रयणमए
उंबरबटपिपलपिंप249
उवगृहणगुणजुत्तो 180
उवयारओ वि विणओ 230 ऊसरखेत्ते बीयं
9 एए महाणुभावा 245 एगो वि णमोयारो 247 एगे दोघदघडारहेहि 286 एयाण णमोयारो 200 एयारसम्मि ठाणे 122 एयारसंगधारी । 123 एरिसगुण अट्ठजुदं ___21 एरिसगुण अट्ठजुवं 281 एवं चउत्थ ठाणं 70 एवं णाऊण फलं 53 एवं तइयं ठाण 283 एवं दसणसावय 96 एवं बहुप्पयारं
194 275 144
87 118 253 153
7.
60
189 112 88 89 182 142 167 156 155
संकाय पत्रिका-१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org