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________________ १९२ श्रमणविद्या 239) दाणस्साहारफलं को सक्कइ वणिउं भुवणयले । दिणेण जेण भोया लब्भंति मणच्छिया सव्वे ॥ 240) दायारो उवसंतो मणवयकायेण संजुवो दच्छो । दाणे कय उच्छाहो पयडिय वच्छल्लगुणो य मडं ॥ 241) भत्ती सद्धाय खमा सत्तं चिय तह य लोहपरिचाओ । विष्णाणं तह काले छग्गुणा होंति दायारे ॥ Jain Education International 242) जह नीरं उच्छुगयं काले परिणवइ अमियरूवेण । तह दाणं वरपत्ते फलेइ भोएहि विविहिं || 243) देहो पाणा रूअं विज्जा धम्मं तवो सुअं मोक्खं । सव्वं दिण्णं णियमा हवे आहारदाणेण || 244) भुक्खसमा ण हु वाही अण्णसमा णं च ओसहं अत्थि । तम्हा तं दाणेण य आरोयत्तं हवे दिण्णं ॥ 245) आहारमओ देहो आहारविणा पडेइ नियमेण । तम्हा जेणाहारो दिण्णो देहो हवइ तेण || 246 ) ता देहा ता पाणा तत्त तवो जाणविण्णाणं । जवाहा पविस देहे जीवाण सोक्खयरो ॥ 247) आहारासणे देद्दो देहेण तवो तवेण रयसडणं । रयणासे वरणाणं णाणिणमोक्खो जिणो भणइ ॥ 248) भुक्खाकयमरणभयं णासइ जीवाण तेण तं अभयं । सो एव हणइ वाही ओसदं तेण अत्थि आहारो ॥ 249) आयाराई सत्थं आहारबलेण पढइ णिस्सेसं । तम्हा तं सुयदा दिणं आहारदाणेण || 250) महसी तिणदिणं पत्तविसेसेण होइ खीरफलं । सप्पस पुणो दिण्णं खीरं पि विसत्तणं कुणई | संकाय पत्रिका - १ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014028
Book TitleShramanvidya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size14 MB
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