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तच्च वियारो
230 ) अलिउं जंपहु दुव्यणु पुरु दुम्मिज्जइ जेण ।
वसु णरव णरयं गयउ अलियब्भवदोसेण ॥
231)
232)
जइ पाहि संसइ चढहि जइ णिव्वाहु ण अत्थि । तहवि अदिणुमसंगहि जहसिउ जिणसच्छि |
233) गाढ परिग्गह गहिउ णरु हारइ सो अपवग्गु 1 मिल्लि परिग्गह दुव्वसणु सिवसुह कारणि लग्गु ॥ 234) जे जिणणाहं मुहकमलि अवलोयण कय तेसु । तिलोयह लोण मुहमंडल परसेसु ॥
जइ विउ दुपवरिणि णिवसंत संसारि । सुहि सुमनंतर विमणस रंतु निवारि ॥
11. दाणपयरणं
235) अभयपयाणं पढमं विदियं तह होइ सत्थदाणं च । इयं सहदाणं आहारदाणं चउत्थं तु ॥
236 ) सव्वेसि जीवाणं अभयं जो देइ मरणभेत्तूर्णं । सो ब्भिओ तिलोए उत्तस्सो होइ सव्वेसिं ॥
11.
237) सुदाणेण य लब्भइ मइसुइणाणं च ओहिमणणाणं । बुद्धिवेण सहियं पच्छा वर केवलं गाणं ॥
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238) ओसहदाणेण णरो अतुलिमबलपरक्कमो महासत्तो । वाहिविमुक्कसरी चिराउसो होइ तेयट्ठो ॥
cf. भावसं० 489 to 688.
दिसावयविहिपयरणं ।
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संकाय पत्रिका - १
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