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________________ १९० श्रमण विद्या 220) विणओ वेय्यावच्चं कायकिलेसो य पुज्जणविहाणं । सत्ती जहाजोगं कायव्वं देवि एहि ॥ 221) हिंसारहिए धम्मे अट्ठारहदोसवज्जिए देवे । णिग्गंथे पव्वयणे सद्दहणं होइ सम्मत्तं । Jain Education International 222) महुमज्जमंसविरइ चाओ पुण उंबराण पंचन्हं । अव मूलगुणा वति फुडु देसविरयमि ॥ 223) भवणं जिणस्स ण कयं ण य बिबं णेय पूइया साहू । दुद्धरवयं न धरियं जम्मो परिहारिओ तेहिं || 224) भावहु अणुव्वयाई पालह सीलं च कुह उववासं । पव्वे पव्वे नियमं देही अणवरयदाणाई || 225) जह गेहेसु पलित्ते कूवं खणिऊण पारयंते ण । तह संपत्ते मरणे धम्मं कह कीरए जीव || 226) खणभंगुरे सरीरे मणुयभवे अब्भपडलसारिच्छे । सारं इत्तियमित्तं जं कीरइ सोहणो धम्मो ! 227) जिणवंदण गुणविणउ तव संयम तह उवयारु । जं किज्जइ खणभंगुरे देहे इत्तिउ सारु ॥ 228) जो संतावइ अणुदिह छव्विह जीव णिकाउ | णिरय णिबंधण कम्मउ बलि किज्जइ सो काउ ॥ 229) णिग्घिण णिट्ठर दुट्टुमण जे पाणिबहं करंति । ते आवज्जिय पाव मरु णिच्छय नरय पडंति ॥ 220. cf, उवा० 319. 221. 222. cf. भावसं ० 356. 224. cf. भावसं० 488. cf. मोक्खपा० 90, भावसं० 262. संकाय पत्रिका - १ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014028
Book TitleShramanvidya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size14 MB
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