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तच्चवियारो 251) जं रयणत्तयरहियं मिच्छामइक्रहिय धम्म अणुलग्गं ।
जइ वि हु तवइ सुघोरं तहावि तं कुच्छियं पत्तं ।। 252) जस्स ण तवो ण चरणं ण चापि जस्सत्थि वरगुणो कोई।
तं जाणेह अपत्तं अफलं दाणं कथं तस्स ॥ 253) ऊसरखेत्ते वीयं सुक्खे रुक्खे य णीरअहिसेओ।
जह तह दाणमपत्ते दिण्णं खु णिरत्थयं होइ ।। 254) चाण्डालभिल्लछिप्पय डोंवय कल्लाल एवमाईणि ।
दीसंति रिद्धिपत्ता कुच्छियपत्तस्स दाणेण ||
255) पत्थरमया वि दोणी पत्थरमप्पाणयं च बोलेइ ।
जह तह कुच्छियपत्तं संसारे चेव बोलेइ ।। 256) किविणेण संचियघणं ण होइ उवयारियं जहा तस्स ।
महुरियसंचियं महु हरंति अण्णे सपाणेहिं ।। 257) कस्सत्थि चिरा लच्छी कस्स थिरं जोवणं जीयं ।
इय मुणिऊण सुपुरिसा दिति सुपत्तेसु दाणाई ॥ 258) दुक्खेण लहइ वित्त वित्ते लद्धे वि दुल्लहं चित्तं ।
लढे वित्ते चित्ते सुदुल्लहो पत्तलाभो य । 259) वित्तं चित्तं पत्तं तिण्णि वि पावेइ कहइ जइ पुरिसो ।
तो ण लहइ अनुकूलं सयणं पुत्तं कलत्तं च ॥ 260) पडिकूलियाउ काउ विग्धं कुव्वंति धम्मदाणस्स ।
उवएसंति दुबुद्धि दुग्गइगमकारया असुहा ॥ 261) सो किह सयणो मण्णइ विग्घं जो कुणइ धम्मदाणस्स ।
दाऊण पावबुद्धिं पाडइ दुक्खायरे णिरए ।
262) सो सयणो सो बंधू सो मित्तो जो सहिज्जओ धम्मो ।
जो धम्मविग्घयारी सो सत्तू णत्थि संदेहो ॥
संकाय पत्रिका-१
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