SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९३ तच्चवियारो 251) जं रयणत्तयरहियं मिच्छामइक्रहिय धम्म अणुलग्गं । जइ वि हु तवइ सुघोरं तहावि तं कुच्छियं पत्तं ।। 252) जस्स ण तवो ण चरणं ण चापि जस्सत्थि वरगुणो कोई। तं जाणेह अपत्तं अफलं दाणं कथं तस्स ॥ 253) ऊसरखेत्ते वीयं सुक्खे रुक्खे य णीरअहिसेओ। जह तह दाणमपत्ते दिण्णं खु णिरत्थयं होइ ।। 254) चाण्डालभिल्लछिप्पय डोंवय कल्लाल एवमाईणि । दीसंति रिद्धिपत्ता कुच्छियपत्तस्स दाणेण || 255) पत्थरमया वि दोणी पत्थरमप्पाणयं च बोलेइ । जह तह कुच्छियपत्तं संसारे चेव बोलेइ ।। 256) किविणेण संचियघणं ण होइ उवयारियं जहा तस्स । महुरियसंचियं महु हरंति अण्णे सपाणेहिं ।। 257) कस्सत्थि चिरा लच्छी कस्स थिरं जोवणं जीयं । इय मुणिऊण सुपुरिसा दिति सुपत्तेसु दाणाई ॥ 258) दुक्खेण लहइ वित्त वित्ते लद्धे वि दुल्लहं चित्तं । लढे वित्ते चित्ते सुदुल्लहो पत्तलाभो य । 259) वित्तं चित्तं पत्तं तिण्णि वि पावेइ कहइ जइ पुरिसो । तो ण लहइ अनुकूलं सयणं पुत्तं कलत्तं च ॥ 260) पडिकूलियाउ काउ विग्धं कुव्वंति धम्मदाणस्स । उवएसंति दुबुद्धि दुग्गइगमकारया असुहा ॥ 261) सो किह सयणो मण्णइ विग्घं जो कुणइ धम्मदाणस्स । दाऊण पावबुद्धिं पाडइ दुक्खायरे णिरए । 262) सो सयणो सो बंधू सो मित्तो जो सहिज्जओ धम्मो । जो धम्मविग्घयारी सो सत्तू णत्थि संदेहो ॥ संकाय पत्रिका-१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014028
Book TitleShramanvidya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy