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________________ १७४ श्रमणविद्या 54) रे जीव पावणिग्धिण दुलह लहिऊण माणुसं जम्मं । जो ण कुणसि जिणधम्मं हा पच्छा तं विसूरिहसि ॥ 55) जो ण कयं अण्णभवे धम्म रे जोव सुंदरं विमलं । अणुहवसि ताई पुरुआ दुक्खाई अणंतसंसारे ।। 56) ण परो करेइ दुक्खं णेव सुहं कोइ कस्सई वेह । जं पुग सुचरिय दुचरिय परिणवइ पुराकयं कम्मं ॥ 57) जइ पइससि पायाले अडविइं अह महासमुहं वा । पुव्वकयाइं ण छुट्टसि अप्पाणं घायसे जइवि ।। 58) जं चेव कयं तं चेव भुंजसि णत्थि एत्थ संदेहो। अकयं कत्तो पावसि जइवि समो देवराएण ।। 59) किससि सुससि सूससि दीहं णीससि वहसि संतावं । धम्मेण विणा सोक्खं कत्तो रे जीव पाविहसि ।। 60) धम्मेण विणा जइ चितियाइं लब्भंते जीव सोक्खाई। तो तिहुवणम्मि सयले मणु को वि ण दुक्खिओ हुज्ज ।। 61) धम्मेण कुलपसंसइ धम्मेण य दिव्वरूपसंपत्ति । धम्मेण धणसमिद्धी धम्मेण वि वित्थरा कित्ती ।। 6.) धम्मो मंगलमूलं ओसहमूलं च सव्व दुक्खाणं । धम्मो धणं च विमलं धम्मो. ताणं च सरणं च ॥ 63) किं जंपिएण बहुणा जं जं दीसइ समत्थ तियलोए । इंदियमणाभिरामं तं तं धम्मो फलं सव्वं ।। 64) आरंभसयाइं जणो करेइ रिद्धीए कारणे मूढो । एगं ण कुणइ धम्मं जेण व लहइंति रिद्धीओ ।। 65) इह लोयम्मि वि कज्जे सव्वारंभे जह जणो कुणइ । तह जइ लक्खंसे ण वि परलोए ता सुही होइ ।। संकाय पत्रिका-१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014028
Book TitleShramanvidya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size14 MB
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