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जैन विद्या एवं प्राकृत : अन्तरशास्त्रीय अध्ययन
जसो
जामि जोइस, जमो
लायण्णं
चलणो कलुणो लोम
थोर
(२५) य को ज
जुष्ठोहि (ऋ १-४४-२) युष्ट, यशः जज्ञानां (ऋ १-२३-४)
यज्ञानां जामि (ऋ १-६५-४)
यामि ज्योतिस् (ऋ४-३७-१०) द्योतिस्, यमः
___ अ० २-२८-७) (२६) व कोय
पृथुजवः (नि० पृ० ३८३) पृथुजयः, लावण्यं (२७) र को ल मधुला (ऋ १-१९१,७०) मधुर, चरण
करुणः लोम (अ० ४-१२-४)
रोम (२८) ल को र सरिर२९
सलिल, स्थूल (२९) ह को भ
गृभीतां (ऋ १-१६२-२) गृहीत (३०) ह को घ
सुदुघां (साम सू० २९५) सुदुहां, संहार सवर्दुघां (सा० सू० २९५) सर्वदुहां, दाह
विदेघ (शत० ब्रा० ४-१-३-१०) विदेह (३१) संयुक्त व्यञ्जन क्ष को च्छ अच्छ (अथ-३-४-३)
अक्ष, वृक्ष ऋच्छला
ऋक्षला, रूक्ष परिच्छ
परिच्छव, सादृश्ये
कुक्षिः (३२) व्यञ्जन द्वित्व प्रवृत्ति
वीर्येण यजु ५-२०-१) वीर्येण, पर्यत सूर्य्यरूप (यजु ४-३५-९) सूर्य
गंभीअ
संघार
दाघ विदेघ
वच्छ रिच्छ सारिच्छं कुच्छी
पज्जंत सुज्ज
परिसंवाद-४
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