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वैदिक भाषा में प्राकृत के तत्त्व
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नडो भडो घडो घडइ
दालिम कीलइ
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(१७) ट कोड
हव्यराड् (ऋ१-१२-६) हव्यराट, नटः जनराड् (यजु ५-२४-१) जनराट, भटः स्वराड् (यजु ५-२४-१) स्वराट, घटः
सम्राड् (यजु ४-३०-१) सम्राट, घटति (१८) ड को ल ईले२६
ईडे, दाडिम अहेलमान
अहेडमान, क्रीडति (१९) न कोण
ण (साम-सू० ५७) णो (सा० २५)
णयामि (अ० २-१९-४) (२०) ध को थ, थ को ध
समिथ (यजु १७-७९-१) समिध माघव (शतब्रा-४-१-३-१०) माधव अध (सा० १४९६)
___ अथ नाध२७
नाथ यथा (२१) द को उ
दूउम (वा० सं० ३-३६) दुर्दम, दम्भः
पुरोडास (यजु ३-४४) पुरोदास, दाहः (२२) १२८ को ब त्रिष्टुब गायत्री (ऋ १०-१४-१६) त्रिष्टुप, कुणपं
क्लापः (२३) ब को भ
त्रिष्टुभ (यजु १३-३४-१) त्रिष्टुब, बिसनी (२४) भ को ह दूलह (ऋ.१-६१-१४)
दुर्लभ ककुह (ऋ. १-१८१-५) कुकुभ, ऋषभ
।
डम्भो डाहो
कुणवं
क्लावो
भिसिणी
ककुह, रिसह
परिसंवाद-४
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