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थे।
१७०९ के अपने पत्र में उदयपुर वालों को लिखा था राज्य सेवा में विशिष्ट कार्य करने से सं. १७६७ में इन्हें कि जयसिंह के नौकर रामचन्द्र दीवान ने नालायक और ९०० बीघा जमीन मिली। जयपुर की ओर से बसवा बेहूदा कार्यवाही की - बादशाही नौकरों से लड़ाई की। और बाद में टोंक के प्रबन्धक रहे। सं. १८१४ में इन्हें अत: जयसिंह उसे निकाल दें। इससे दीवान रामचन्द्र और जागीरें मिलीं और सं. १८१५ में इनका स्वर्गवास का आमेर पर कब्जा करना स्पष्ट है।
हो गया। दीवान रामचन्द्र जयसिंह के अधिक प्रिय थे। दीवान भीमसिंह-ये किशनचन्दजी के लड़के उस समय और भी दीवान थे, पर प्रमुख रामचन्द्र ही थे। सं. १८५५ से सं. १८५९ तक प्रधान दीवान रहे।
वैसे सं. १८१६ से सं. १८६७ तक इनका राज्य सेवा दीवान रामचन्द्र के दादा बल्लशाह थे। मुगल काल था। सं. १८६७ में इनका स्वर्गवास हुआ। इस बादशाह औरंगजेब के समय में छत्रपति शिवाजी के प्रकार इस वंश ने पाँच-छह पीढ़ी तक उच्च पद पर पास महाराजा रामसिंह की तरफ से बलशाहजी से रहकर राज्य की सेवा की। सुलह की बातचीत की थी और शिवाजी को कैद कर महामंत्री मोहनदास-ये मिर्जा राजा जयसिंह लेने पर उन्हें छुड़ाकर लाने में पूरा सहयोग दिया था। के महामंत्री थे। मिर्जा राजा का राज्यकाल सं. १६७८ यह संवत् १७२३ की घटना है।
से सं. १७२४ तक का था। मोहनदास के पूर्वज एवं बलशाह के पत्र एवं रामचन्द्र के पिता विमलदास वंशज में अनेक व्यक्ति दीवान हुए हैं। बड़जात्या गोत्रीय भी दीवान थे, जो जाटों के साथ युद्ध में काम आये मोहनदास संघी कहलाते थे। इनके पूर्वजों में संघी उदा थे। लालसोट के पास इनकी छत्री बनी थी। ये वीर का नाम सर्वप्रथम मिलता है। ‘करकंडु चरित' की योद्धा थे। रामगढ़ में विमलपुरा नामक मोहल्ला इन्हीं के प्रशस्ति में इनका नाम आया है। इनके पौत्र डालू ने नाम से बसा था। इनकी हवेली वहाँ थी। सं. १६६३ में व्रत के उद्यापन में यह ग्रन्थ भेंट किया दीवान रामचन्द्र धार्मिक व्यक्ति थे। आमेर और
था। उदा के पुत्र मल्लिदास के लिए 'संघभार' धुरन्धर रामगढ़ के बीच साहीवाड ग्राम में आपने संवत् १७४७
'संघही' शब्दों का प्रयोग शिलालेखों में हुआ है। में एक मंदिर बनवाया था, जो आज मौजूद है। जब
इनके नाम कहीं मालीजै भौंसा, कहीं मल्लिदास, कहीं रामचन्द्रजी राजा जयसिंह के साथ उज्जैन में रहते थे,
___ मालू और कहीं श्रीमाला मिलते हैं। ये बड़े प्रतिभा तो वहाँ भी एक मंदिर बनवाया और जब दिल्ली में रहते
सम्पन्न व्यक्ति थे। इन्हीं के नाम से इनका वंशज आज थे, तो वहाँ भी मंदिर बनवाया। संवत् १७७० में
भी मालावत कहलाता है। भट्टारक देवेन्द्र कीर्ति के पट्ट महोत्सव में आप अगुआ
मल्लिदास के लड़के डालू थे, जो राज्य में थे। इनका जीवन धार्मिक था। राज्य सेवा के विशेष दीवान थे। ये बड़े ईमानदार और स्वाभाविक थे। किसी अवसरों पर इन्हें राज्य से इनामें, जागीर आदि मिले के बहकावे में आकर राजा नाराज हो गये और इन पर हैं। सांभर पर जयपुर-जोधपुर में तनाजा होने पर आपने जुर्माना कर दिया। डालू के भाई खेतसी थे और उनके ही आधा-आधा हिस्सा का बटवारा कर झगडा मिटाया लड़के मोहनदास। इनका जन्म सं. १६४५-५० के था। फलत: आपको सालाना नमक मिलने का पट्टा बीच होना संभव है। सं. १६६३ में इनका विवाह भी दिया गया था।
हुआ। ये बड़े विचक्षण थे। इनका राज्य सेवा काल दीवान किशनचन्द - ये रामचन्द्र के पुत्र थे।
१ मिर्जा राजा जयसिंह के राज्यकाल के प्रारंभ से ही था
और सं. १७१६ के बाद तक रहा। सं. १७१४ में इन्होंने महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-4/29
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