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15.
जहा रागरण कडाणं कम्मारणं, पावगो फलविवागो जह य परिहीणकम्मा, तिद्धा सिद्धालयमुवैति ।।
-प्रौपपातिक सूत्र-351
16.
18.
देउ ण देवले गवि सिलए णवि लिप्पई रणवि चित्ति अखउ गिरंजणु णाणमउ सिउ संठिय समचित्ति ।।
-परमात्म प्रकाश-123। नेहउ हिम्मलु णामउ सिद्धिहि रिणवस इ देउ । तेहउ णिवसइ वंभु परु देह ह मं करि पेउ ।
--परमात्म प्रकाश-261 परिसा ! अत्तारणमेव अभिनिगिज्झ, एवं दुक्खा पमोक्खसि ।
-प्राचारांग 3131119। देह हो पिक्खि वि जरमरणु मा भउ जीव करेहि । जो अजरामरु बंभु परुसो पापाण मुरोहि ॥
-पाहउ दोहा 1133 (मुनि रामसिंह) य: परमात्मा स एवाऽहं योऽहं स परमस्ततः अहमेव मयोपास्यो, नान्यः काश्चिदिति स्थितिः ।।
-समाधि शतक, 31 (पूज्यपाद) देह देवलि जो वसइ दे उ अरणाइ अरगंतु। केवलणाणफुरंततणु, सो परमम्पु णिमतु ॥
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-परमात्म प्रकाश 113
'उपास्यमानमेवात्मा जायते परमोऽथवा । मथित्वात्मानमात्मौव जायतेग्निर्यथा तरुः'
-समाधिशतक (पूज्यपाद) 23. ज्ञानं केवलसंज्ञं योग निरोधः समग्रक हतिः । सिद्धिनिवासश्च यदा, परमात्मा स्यात्तदा व्यक्तः ।।
-अध्यात्म सार 20124 (उपाध्याय यशोविजय) 24. तदनुकरण भुवनादी निमित्त कारणत्वादीश्वरस्य न चैतदसिद्ध्यः
-प्राप्त परीक्षा 1151 ।
महावीर जयन्ती स्मारिका 78
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