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________________ भारत के दार्शनिकों ने इस सृष्टि का कर्ता धर्ता तथा पुरुषों के भाग्य का विधाता ईश्वर है या नहीं आदि प्रश्नों पर पर्याप्त ऊहापोह किया है और कुछ ने उसका अस्तित्व स्वीकारा और कुछ ने नकारा है । चार्वाक, सांख्य, मीमांसक, यौद्ध और जैन ऐसे किसी ईश्वर की सत्ता मानने से इन्कार करते हैं ।. विद्वान लेखक ईश्वरवादी और श्रनीश्वरवादो दोनों प्रकार के दर्शनों द्वारा अपने-अपने पक्ष में दिये गये तर्कों की समीक्षा कर इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि शरीर इन्द्रिय और जगत के कारण रूप में 'ईश्वर' नामक किसी अन्य सत्ता की कल्पना व्यर्थ है । इस सम्बन्ध में उन्होंने जैन दृष्टिकोण का समर्थन किया है । लेख परिश्रमपूर्वक लिखा हुआ। तत्सम्बन्धी जानकारी से भरपूर है । - पोल्याका ईश्वर : परिकल्पित निरर्थकता; आत्मा का परब्रम्हत्व स्वरूप : संत्रस्त एवं निराश मानव हेतु जीवन - विकास की आनन्दमयी एवं वैज्ञानिक दृष्टि इस विशाल पृथ्वी पर जब कोई लघु मानव दृष्टि विधान, जीवों की उत्पत्ति तथा उनके भाग्य निर्माता ग्रादि विषयों पर विचार करने के लिए उद्यत होता है तथा सृष्टि के विविध जीवों सुख-दुख की विषमताएं पाता है तो जगत के महावीर जयन्ती स्मारिका 78 Jain Education International * डा० महावीरसरन जैन, डी. फिल. डी. लिट्. वि. वि. निवास गृह पचपेटी जबलपुर निर्माता पालक एवं संहारक किसी श्रदृश्य एवं परम शक्ति के रूप में ईश्वर की कल्पना करके, उसी को जीवों की उत्पत्ति एवं उनके भाग्य विधान का भी कारण मानकर सन्तोष कर लेता है । इसी भावना से अभिभूत हो वह इस प्रकार की विचार For Private & Personal Use Only 1-15 www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
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