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को दृष्टि में रखते हुये महावीर को समाज उदासीन में-प्रतिमाओं और चित्रों में अवलोकनार्थ मिलती कहा जा सकेगा। भावनाओं के आधार पर है। व्यक्तित्व का वर्गीकरण किया जावे तो महावीर को प्राशावादी सर्वदा प्रमुदित प्रफुल्ल व्यक्ति कहा सूर्य सत्य तो यह है कि जैसे महावीर के गुणों जा सकेगा। महावीर के व्यक्तित्व में प्रात्मचेतना, का वर्णन करना जिह्वा द्वारा सहज सरल नहीं है सामाजिकता तात्कालिक वातावरण, ध्येय पर दृष्टि वैसे ही उनके दिव्य भव्य व्यक्तित्व का मापन अपूर्व अनेकता में एकता की भावना विकेन्द्रित हुई लेखनी-प्रसूत शब्दों द्वारा कर सकना सम्भव नहीं है। महावीर शारीरिक मानसिक-यात्मिक तीनों है। लगता है कि अपनी इस असफलता में ही प्रकार के व्यक्तियों के कुबेर थे। महावीर की महावीर व्यक्तित्व मापन की सफलता अन्तर्निहित निर्वसन सौम्य छवि, आज भी उनकी प्रतिकृतियों है।
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ज्योतिर्मय ! तुम्हारी प्रतीक्षा है
* रूपवती 'किरण'
___ ज्योतिमय ! तुम्हारी प्रतीक्षा है। अज्ञान की प्रो दिव्यदर्पण ! तनिक अपनी झांकी तो घनी अंधियारी में अपना लोकोत्तर दिव्य पालोक दिखा दो, मैं अपना रूप संवार लू। यह निखिल फैला दो न । ओ महामानव ! तुम एक बार पुनः जग अपनी छवि निहार ले। कदाचित् अपना वही 'जियो और जीने दो' का परम पावन सन्देश प्रतिबिम्ब देख उसे अपनी सुधि हो आये । वह सुना दो। जिससे दिग्दगंत अग-जग गूंज उठे और भटकना छोड़ अपनी राह लौट पड़े । यथार्थतः मानव से लेकर सूक्ष्मतम प्राणियों में भी सुख शांति प्रकाश में खुली आँखों सत्य पर प्रहार असम्भव की लहर धावित हो नवसंदन दे दे। मानवता है। अज्ञानतम में मानव उद्दाम लालसानों की जय जयकार करेगी और मैं चन्द्र के थाल में नक्षत्रों मधुर प्रेयों प्रलोभनों का आवरण डाल मोहक के मोतियों की झालर लगा सूर्य की प्रखर ज्योति आकर्षण हृदय में बसाये अांखें मूद निरन्तर से तुम्हारी आरती उतारूंगी।
अविवेक के हथौड़े से सत्य पर प्रहार किये जा रहा
महावीर जयन्ती स्मारिका 78
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