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चमकते सितारे जो प्रस्त हो गये
यह वर्ष जैन शासन के लिये शुभ नहीं कहा जा सकता । इस वर्ष में दिगम्बर जैन समाज के शिरोमणि साहू श्री शान्तिप्रसाद जैन हमें बिलखता छोड़कर चले गये। जिनवाणी के तपःपूत कट्टर सुधारक पं० परमेष्ठीदास जैन और प्रज्ञाचक्षु पण्डित सुखलाल जैन, सामाजिक कार्यकर्ता एवं समाज को कार्तकर्त्तानों की सुन्दर टीम देने वाले प्राणिमात्र के सेवक श्री रिषभदास रॉका, पं उदय जैन तथा प्राच्य साहित्य के प्रकाशक श्री सुन्दरलाल जैन हमारे बीच नहीं रहे। ये ऐसे व्यक्तित्व थे जिन पर समस्त जैन समाज को नाज था । ये व्यक्ति नहीं अपितु स्वयं में मूर्त संस्थाएं थे । इनके प्रभाव की समाज में पूर्ति होना सम्भव नहीं ।
श्रावक शिरोमणि साहू शान्तिप्रसाद जैन
अनभिषिक्त सम्राट् श्रावक शिरोमणि, दानवीर और समाज के कर्णधार साहू श्री शान्तिप्रसाद जैन के बारे में कौन ऐसा व्यक्ति होगा जो नहीं जानता हो । सरस्वती और लक्ष्मी के इस वरदपुत्र का गत 27 अक्टूबर को प्रातः हृदय गति रुक जाने से स्वर्गवास हो गया । आपके जीवन में धर्म, कर्म, अर्थ और मोक्ष की निरुपम संगति थी ।
प्रेय व श्रेय के समान उपासक स्व० साहू जी का जन्म उत्तर प्रदेश के अंतर्गत नजीबाबाद के साहू घराने में 1912 में हुआ । आपके पितामह श्री सलेक चंद साहू थे। पिता श्री दीवानचंद जी और मातुश्री मूर्तिदेवी थीं ।
आपका समूचा विद्यार्थी जीवन प्रथम श्रेणी का रहा । यह केवल अध्ययन और ज्ञानोपार्जन की दृष्टि से ही नहीं, वरन् अन्य वृष्टियों से भी । वे सभी सद्गुण और सद्वृतियां श्राप में विकसित हुई, जो सफलता के शिखर तक पहुंचने के लिए आवश्यक हैं ।
उद्योग के क्षेत्र में श्रापने स्वयं विभिन्न श्राधुनिक पद्धतियों का गंभीर अध्ययन किया तथा विविध विषय क्षेत्रों में निरंतर गवेषणाएँ कराई ।
महावीर जयन्ती स्मारिका 78
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