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"आपने इस वृद्धापन में भी जैन समाज की जो सेवा की है और कर रहे हैं. वन्दनीय है । प्रतिवर्ष की स्मारिका इसका प्रमाण है, स्मारिका की छपाई -सफाई, लेखों का चयन प्रफ श्रादि इतने मुश्किल काम हैं कि अच्छे से अच्छा नौजवान एक बार किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाय । मगर आप प्रतिवर्ष इसे एक नये आकर्षण के साथ पेश करते हैं इसे देखकर श्रद्धा से माथा झुक जाता है, बधाई स्वीकारें |
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"यह एक संदर्भ ग्रन्थ का रूप धारण कर हैं । कलेवर और सामग्री दोनों ही दृष्टियों से इसका स्थान स्वतः सर्वोपरि सिद्ध होता है ।"
ग्रन्य है ।"
हास्यकवि हजारीलाल जैन 'काका' (बुन्देल खण्डी) सकरार ( जिला झांसी)
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गई है। कुछ लेख तो बड़े ही महत्व के
“ स्मारिका एक प्रकार से इतिहास, कला, साहित्य, और धर्म-दर्शन का संदर्भ
जिनवाणी (मासिक) जयपुर, नवम्बर, 1977
" प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी जैन सभा की यह वार्षिक स्मारिका न केवल विज्ञापनों से भरी है, बल्कि चार खण्डों में हिन्दी अंग्रेजी की अच्छी रचनाओं का सुन्दर संकलन एवं सम्पादन भी है । "प्रथम एवं द्वितीय खण्ड के कुछ निबंध तो बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। स्मारिका पठनीय है।
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शैलेन्द्रकुमार रस्तोगी एम० ए० ( पुरातत्व एवं संस्कृति)
पुरातत्व संग्रहालय, लखनऊ ।
जैन जगत, बम्बई, मई 1977
' स्मारिका के नियमित प्रकाशन भोर इसमें आने वाली महत्वपूर्ण सामग्री के कारण इसका महत्व बढ़ गया है । उच्च कोटि की सामग्री का चयन और उस पर सम्पादकीय टिप्पणियां स्वतः ही पाठक को एक बार पढ़ना प्रारंभ करने के पश्चात् पूर्ण स्मारिका का पठन न हो जाने तक छोड़ने का मन नहीं करता ।'
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वल्लभ सन्देश, जयपुर जुलाई 1977
महावीर जयन्ती स्मारिका 78
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