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उसका भी विवाह हो चुका है। श्री सालिगरामजी कुछ दिन बाद उनकी पत्नी श्रीमती कस्तूरी बाई के एक पुत्री हुई रतनबाई जो जयपुर के ठोलिया भी चल बसीं। बाबूजी के निधन से प्रागरे का परिवार में ब्याही । अशोक सम्हाल नहीं पाया तो एक बहुत बड़ा सार्वजनिक केन्द्र उजड़ गया। इससे प्रेस भी हाथ से निकल गया। मकान बाबू कपूर आगरे की धार्मिक सामाजिक, साहित्यिक और चन्दजी के सामने ही बिक चुका था।
राष्ट्रीय गतिविधियों को गहरी ठेस लगी । चराग गुल---ऐसा परिवार था दीवान झूथा- परिवार में रामजी का और ऐसे देव पुरुष थे उनके वंशज श्री अशोक कुमार जैन जरूर है परन्तुबा. कपूरचन्दजी । 3 जनवरी सन् 1954 को जिस गुल से थी उम्मीद, चढ़ायेगा लाके फूल क्रूर दुर्दैव ने उन्हें हमारे बीच से उठा लिया। गुलकर गया चराग वह उनके मजार का ।।
महावीर री सीख अमर रहे।
त्राहि त्राहि मचगी जग माहि
जीवां ने जीव ही भाख रह्या । चौरी कपटी छीना झपटी, हिंसा रा दिन दिन दूस हुआ ।।
जग-अधियारा मेटण खातर ___ इक दीप चमकतो परकट हुयौ । यौह दीप वही परमारथ रो,
श्री महावीर रो जलम भयरो ।।
धर्मा रा सारा गिरथा ने,
दोहण कर इक ही तन्त दियो । जीवो जीवण दो सब ही ने,
मानवता रो यो पंथ दियो ।
संयम-समता-विनय सेत,
महिंसारो जग ने पाठ दियो ।
"महावीर जयन्ती स्मारिका 78
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