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प्रेस ने बड़ी सहायता की । मासिक बुलेटिन गुप्त का। रूप से वहीं छपते । पुलिस ने भनेकों बार वहां छापे भी मारे । जब कुछ नहीं मिलता तो गवर्न
कुशल सम्पादक व प्रशासक -जो जैन संदेश मेण्ट खीज कर प्रेस को सील कर दिया करती,
पान दिग. जैन सव मथुरा द्वारा निकाला जा रहा और वह महीनों बन्द रहता। सन् 1942 के
है उसके जन्मदाता वे ही थे । प्रेस था ही। 1929 भारत छोड़ो आन्दोलन में आपने बेजोड़ सेवा की,
में अखबार शुरू कर दिया। थोड़े ही दिनों में उसने उन दिनों गुप्त प्रकाशनों में आपका बहुत बड़ा हाथ
देश और समाज में अच्छी ख्याति प्राप्त कर ली। था । ऐतिहासिक लाल पर्चा हाथोंहाथ वहीं छपा ।
निर्भीक स्वतन्त्र पर तटस्य नीति थी उसकी। राष्ट्रीय क्रान्तिकारियों की गप्त बैठके. यापक मोती। प्रश्न भी उससे अछूते नहीं रहते थे।संचालन, सम्पादिसम्बर 1942 में जब प्रसिद्ध आगरा षड्यन्त्र ।
दन समाचार संकलन और प्रफ पठन से लेकर पत्र केस में अनेक लोग पकड़े गये तो पुलिस ने आपको
व्यवहार तथा डिस्पेच तक का सारा काम वे स्वयं ही भी घेरा, डराया, और धमकाया। तब, आप, क
__ करते । बला के परिश्रमी थे। तेज इतना लिखते प्रागरे से फरार हो गये । प्रेस पहले ही सील हो
कि स्टेनो भी मात खा जाय । दो साल तक अखवार चुका था। दो वर्ष तक आप इधर-उधर घमते. बड़ी खूबी व शान से चलाया। तदुपरान्त बेटे के छिपते और कष्ट उठाते रहे। इस दौरान जो कठि- समान पाला पोसा होनहार पत्र को उन्होंने संघ को नाइयां और विपत्तियां आपने झेली उनकी कल्पना
सौंप दिया जो अब भी अपने 50 वें वर्ष में निकल पाठक स्वयं कर लें। उनका साथी होने के कारण
रहा है । सन् 1938 में उन्होंने बच्चों के लिए इन पंक्तियों के लेखक को भी राजकीय सेवा से सुन्दर मासिक पत्र सुनझुना निकाल डाला । इतना मोप्रत्तिल कर दिया गया था।
लोकप्रिय बन गया था वह कि स्वयं प्राचार्य महा
बीर प्रसाद द्विवेदी तक ने उमकी प्रशंसा की थी। उदारमना विशाल हृदय-आन्दोलन की उसका सारा काम भी वे स्वयं ही करते । वह दो समाप्ति पर दो वर्ष बाद सन् 1944 में बाबूजी साल ही चल पाया था कि आन्दोलन की चपेट में आगरा लोटे, प्रेस पुनः चला, और अच्छा चला। मा गया। प्रेस बन्द हो जाने पर वह भी टूट अच्छे दिन आने पर वे साथियों को नहीं भूले। ममा । संवत 1983 में वीर रस प्रधान मासिक कइयों की भरसक गुप्त मदद की। धेवतों को पाला वीर सन्देश का प्रकाशन उन्होंने और किया । पोषा और पढ़ाया । एक बार मैं जब इलाहाबाद में उसका सम्पादन किया था श्री महेन्द्रजी ने । यह भी था और बच्चे आगरे मैं; मेरे एक पुत्र को भयंकर दो साल तक ही चल पाया था । टायफाइड रोग हो गया था वे सुनते ही मेरे घर दौड़े पाये, और सब को सान्त्वना दी और डॉक्टर परिवार-बा० कपूरचन्दजी की दो शादियां लाये । स्ट्रेप्टोमाइसौन की गोलियां जो उन दिनों हुई । पहली लश्कर से और दूसरी डीग से। पहली 30--35 रु० दर्जन पाती थीं, पता नहीं कितनी पत्नी से जम्मी कञ्चनबाई जो महावीर क्षेत्र के भू. पाई, मंगाकर दीं। फल और दूध अलग । सूचना पू. मैनेजर जयपुर निवासी श्री गुलाबचन्दजी मिलने पर मैं आया तो धैर्य बंधाया और बोले शाह के सुपुत्र श्री भंवरलाल शाह के साथ व्याहीं । मैं तो यहां था ही, मेरे होते आप चिन्ता न करें। दूसरी पत्नी ने जन्म दिया पुत्री सरोज वाला, ऐसे उदारमना महापुरुष थे वे । कभी वखान नहीं. मोर पुत्र प्रशोक कुमार को । सरोज वाला काशी में किया उन्होंने अपनी देशभक्ति मौर सेवा कार्यों ब्याह दी गई और प्रशोककुमार मागरे में है ।
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महावीर जयन्ती स्मारिका 78
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