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प्रसिद्ध क्रांतिकारी सरदार भगतसिंह ने फांसी पर झलने से पूर्व बड़े जोश से कहा था--'शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर वर्ष मेले, कौम पर मरने वालों का बाको यही निशां होगा, किन्तु उनका कथन कथन मात्र ही रह गया । चिताओं पर हर वर्ष मेले जुड़ने की बात तो दूर बहुत से शहीदों को तो प्राज बिलकुल भुला ही दिया गया। संघी झूथाराम एक ऐसे ही स्वतन्त्रता प्रेमी व्यक्ति थे । जैसा कि ऐसे व्यक्तियों के साथ प्रायः होता पाया है इतिहासकारों ने उनके साथ न्याय नहीं किया । अग्रजसम भाई भंवरलालजी ने जयपुर के जैन दीवानों पर बहुत काम किया है। लेकिन वह सब प्रकाशन की बाट जोह रहा है। दिगम्बर समाज के कर्ता धर्ता श्रीमान धीमान पता नहीं क्यों इस महत्वपूर्ण कार्य की ओर से उदासीन हैं ? पूर्वजों के प्रेरणास्पद गौरवशाली व्यक्तित्वों को प्रकाश में लाने में उनके सामने न माजूम क्या बाधा है ? अाज खण्डेलवाल जैन (सरावगी) समाज को जो वर्तमान अवस्था है उसका एक सबसे बड़ा कारण यह भी है कि वे अपनी जाति के पूर्व प्रेरणास्पद गौरव से अपरिचित हैं।
-पोल्याका
संघी झूताराम और उनके पूर्वज
समाजरत्न पं० भंवरलाल न्यायतीर्थ
सपादक-वीरवाणी
(जयपुर)
राजस्थान के इतिहास में जैनों का साहित्य, अपार साहित्य द्वारा प्रतिभासित हो रहा है कला, शौर्य, शासन, राजनीति प्रादि सभी क्षेत्रों में वहां जैन मन्दिरों की स्थापत्य कृतियां उनके कला महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जैन संस्कृति की रक्षा प्रेम को प्रदर्शित कर रही हैं। इसी प्रकार प्रान्त करते हुए इस प्रान्त की उनने अपार सेवा की की शासन व्यवस्था और राजनीति में भी जैनों का है । जहां साहित्य निर्माण एवं उसके संरक्षण का बहुत हाथ रहा है । प्रस्तुत निबन्ध में हमने ऐसे कार्य प्रत्येक मन्दिरों के शास्त्र भंडारों में स्थित ही एक व्यक्ति और उनके पूर्वजों के बारे में पाठकों
महावीर जयन्त स्मारिका
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